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________________ बचत की आदत सुथार पूसाराम अपने छोटे बेटे हरिराम से मिलने के लिए राजस्थान से बम्बई आया था । हरिराम आज से बीस वर्ष पहले अम्बिका फर्निचर में सौ रुपये महीने की नौकरी पर आया था । पर अपनी लगन तथा हस्तलाघव से आज वह डेढ़ हजार रुपये महीना कमाता है । उसने अपने पारfron हुनर को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने में इतनी दक्षता प्राप्त करली थी कि उसके हाथ का स्पर्श पाकर काठ का टुकड़ा जैसे जीवन प्राप्त कर लेता है । हांलाकि वह एक नौकर के रूप में काम करता था, पर अपने व्यवहार से उसने अपने मालिकों तथा सहयोगियों का समान आदर प्राप्त कर रखा था । उसकी कला की बदौलत ही अम्बिका फर्नीचर बम्बई में ही प्रसिद्ध नहीं था, अपितु विदेशों से भी उसे अनेक आर्डर मिलते थे । कंपनी के मालिक कमलकुमार उसी के गांव के ही रहने वाले थे । एक बार जब वे अपने गाँव ( राजस्थान ) गए तो उन्होंने हरिराम के अंदर सोये कलाकार को भांप लिया और उसे अपने साथ बम्बई ले आये । हरिराम यहां सब तरह से प्रसन्न था । वह बहुत चाहता था कि उसका बूढा बाप एक बार बम्बई आकर अपनी आँखों अपने पुत्र की कला - कुशलता तथा मान-सम्मान को देखे । पूसाराम इसी प्रेरणा से यहाँ आया था । कमलकुमार तो छोटी उम्र में ही बम्बई आ गया था । पहले उसके पिता जी सेठ मायारामजी राजस्थान में ही रहते थे, पर जब कमलकुमार का काम बम्बई में बहुत बढ़ गया तो सेठजी को भी बम्बई बुला लिया गया। यहां उनके पास कोई काम नहीं था । बूढा आदमी स्वाभाविक रूप से बात करना चाहता है, पर बम्बई में ऐसा कौन व्यक्ति मिलता जिसे बात करने की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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