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३८ / नए मंदिर : नए पुजारी
भी देखा कि अब उसका मेरे से बच पाना असम्भव है। अतः साइकिल रोककर खड़ा हो गया। मैं नजदीक पहुंचा तो बह हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। कहने लगा--भाई साहब ! आप मुझे मारना चाहते हो तो मारो, पर मेरी एक बात सुनें । देखिये, आगे वह जो व्यक्ति साईकिल पर दौड़ रहा है, वह भी हमारे मोहल्ले में एक्सीडेट करके आ रहा है । एक बच्चे की टांग टूट गई है, अतः मैं उसे पकड़ने के लिए जा रहा हूं। मैं मानता हूं कि मेरी गलती हुई है। यद्यपि मेरी साइड गलत नहीं थी। मैंने आपके बच्चे को आवाज भी दी थी, पर दुर्भाग्यवश वह चपेट में आ ही गया । मैं इतना निर्दय नहीं हूं कि ऐसे मौके पर नहीं रूक सकता । पर मैं भी उस व्यक्ति को पकड़ना चाहता था। इसलिए मैं नहीं ठहरा। यदि आप मुझे मारना चाहें तो मार लें, पर मेरा अनुरोध है कि एक बार उस अगले व्यक्ति को अवश्य पकड़ा जाए।
यद्यपि मेरा तीसरे साइकिल सवार से कोई रिश्ता नहीं था, पर फिर भी मैंने देखा कि बात कूछ रहस्यपूर्ण मालूम पड़ती है। रमेश के कोई ज्यादा चोट नहीं लगी हैं, और यह साइकिल बाला तो मेरी गिरफ्त में है। इस बच्चू को तो अब मैं नहीं छोडूंगा, पर क्यों न इस सहसा आगत रहस्य को भी जान लिया जाये। अब देरी करने का समय नहीं था । हमारे देरी करने से अगला व्यक्ति रफ्फूचक्कर हो जाएगा। अत: मैंने कहा, ' चलो, हम भी उसे पकड़ते हैं । यह तय कर हम दोनों अपनी-अपनी साइकिलों पर सवार हो गए। अगला साइकिल सवार भी प्राणों की वाजी लगाकर भाग रहा था। प्राण-रक्षा के अवसर पर आदमी में कुछ अतिरिक्त ताकत आ जाती है, फिर भी काफी भागने से वह थक गया था। हम दोनों की रफ्तार काफी तेज थी, बल्कि मैं थोड़ा आगे दौड़ रहा था। अगले वाले साइकिल सवार से मेरा फासला बहुत थोड़ा रह गया था। वह बार-बार मुड़ कर पीछे देख रहा था । जब मैं उसके काफी नजदीक पहुंचा तो, मुझे लगा-वह तो कोई परिचित सा व्यक्ति है। मैंने उसे ललकार कर कहा-ठहर जाओ, नहीं तो खैरियत नहीं होगी। मेरी आवाज सुनकर उसने अपनी गति धीमी कर दी। ज्योंही मैं उसके नजदीक पहुंचा, वह साइकिल से उतर पड़ा। मुझे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह तो
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