SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीसरा अपराध हमारा मकान ऐन मेन रोड़ पर बसा हुआ है । इसे किसका दोष कहा जाए कि हमारे मकान की तीसरी पैड़ी सीधी सड़क पर ही उतरती है , यह एक खोज का विषय है कि कैसे नगरपालिका ने यह मकान बनाने की इजाजत देदी? कैसे मकान-मालिक ने इस तरह मकान बनवा लिया ? पर हम स्वयं भी इस दोष से मुक्त नहीं हो सकते कि हमने भी क्यों यह मकान किराये पर लिया ? एक लाइन में दो-दो कमरों के बने हुए हमारे दस मकान एक प्रकार से खोली जैसे ही हैं । न सामने खुली जगह न पीछे खुली जगह। अगल-बगल में तो खैर खुली जगह होने का सवाल ही नहीं है । अब यह तो नहीं हो सकता कि जहां परिवार बसते हैं, वहाँ बच्चे न हों। और यह भी नहीं हो सकता कि बच्चे हों और खेले नहीं । बल्कि हमारे दस परिवारों के बच्चे तो ऐसे हैं कि धमा-चौकड़ी मचाने में उन्हें शायद फर्स्ट प्राइज मिल सके । वैसे हमारे दसों ही परिवार नौकरी-पेशा लोगों के हैं । हम सभी अलग-अलग गांवों से आए हैं। फिर भी आपस में मेल-मिलाप इतना है कि जैसे एक ही परिवार के सदस्य हों । पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की दोस्ती बहुत गहरी है । यद्यपि पड़ोसियों के साथ प्रेम से रहना बस की बात नहीं होती, पर हमने अपने-अपने परिवारों से कह रखा है कि यदि आपस में प्रेम से नहीं रहोगी तो हमारा जीना भी दूभर हो जाएगा। पुरुष लोग तो खैर अपने ऑफिस की चिन्ता में घुले रहते हैं, फिर भी कभी-कभार इधरउधर की कोई पार्टी हो ही जाती है। आखिर सभी लोग पढ़े-लिखे हैं, अतः जीवन का रस लेने की पूरी आकांक्षा हम में है । पर, इस मामले में हमारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy