SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ / नए मंदिर : नए पुजारी महिलाएँ और भी आगे हैं। पुरुषों के दफ्तर चले जाने के बाद मुहल्ले पर उनका ही एकछत्र साम्राज्य रहता है । अत: गृह कार्य से निवृत्त हो किसी भी जगह उनकी अनायोजित गोष्ठी जम जाती है । इधर-उधर की ही नहीं, सब तरफ की चर्चाएँ वहाँ वे रोक-टोक होती रहती है । बड़े बच्चे तो स्कूल चले जाते हैं, पर छोटे बच्चे आपस में खेलते रहते हैं । कभी-कभी लड़ते-झगड़ते तथा रोते रहते हैं । पर पडोसी धर्म के मर्म को समझने वाली हमारी औरतें अपने-अपने बच्चों के आंसू पूंछ-पाछ कर चुप करा देती हैं और फिर अपनी बातों के एक सूत्री कार्यक्रम में व्यस्त हो जाती हैं। हम बहुत बार औरतों को समझाते हैं कि हमारे सामने ही नहीं, बल्कि ठीकं सटकर मेन रोड है । यातायात का दबाब रहता है, अतः बच्चों को सड़क पर न जाने दें। पर, औरतों का सीधा जवाब रहता है कि क्या बच्चे खेले बिना रह सकते हैं ? हम कहते हैं कि फिर भी उन्हें थोड़ा कन्ट्रोल में रखना चाहिए | कभी भी कोई दुर्घटना हो सकती है, पर उनका सीधा जवाब रहता है कि इतना बच्चों का ख्याल है तो यहाँ सड़क के ऊपर मकान लिया ही क्यों ? कहीं कोई अच्छा-सा फ्लैट क्यों न ले लेते ? हम भी तो आराम से रहती । हम बच्चों का ध्यान रखते ही हैं तो भी तुम पुरुष लोगों का ताना तो हमारे सिर पर ही पड़ जाता है ? यह भी मजे की बात है कि हमारी हर बात का जबाब औरतें समूह की भाषा में देती हैं । फिर भी अपनी लाचारी तथा औरतों की आपसी मैत्री को देख हमें खुशी होती है, इसलिए छोटी-मोटी बातों की ओर हमें ध्यान देने की जरूरत नहीं है । किसी बच्चे की बीमारी, दाखला आदि छोटे-छोटे काम बिना किसी भेद भाव के हमारा संगठित महिला मण्डल अपने-आप सम्भाल लेता है । उनकी इस एकता से आखिर हमको भी थोड़ी राहत मिलती है । अतः हम भी इस यूनियन के जिंदाबाद का नारा लगा देते हैं । एक दिन मैं ऑफिस से आया तो देखा कि पीछे से एक व्यक्ति तेज साइकिल दौड़ाता आ रहा है । हमारे बच्चे सड़क पर खेल रहे थे । साईकिल वाले ने विचारे ने आवाज दी, पर हड़बड़ाहट में बच्चे इधरउधर भागे । इतने में पड़ौसी का बच्चा रमेश उसकी चपेट में आ गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy