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________________ ३४ / नए मंदिर : नए पुजारी दिया है ? पूरियाँ कितनी आकरी-आकरा सका हुई है । ल, तू भा खा। सेठ जी को फिर एक झटका लगा। वे सोचने लगे कि यही जीवन है। बाप और बेटे को जोड़ने वाला यदि कोई सूत्र है तो वह प्रेम ही है, पर साथ ही साथ उन्हें एक दूसरी बात भी बींध गई। वे सोचने लगे--. इन पूरियों को देखने की एक दृष्टि मेरी थी, पर इन्हें देखने की एक दृष्टि इसकी भी है। मैंने पूरियों में अवगुण देखा, पर इसने इनमें भी गुण ढूंढ़ लिया। सेठ जी के रुग्ण मन को जैसे बहुत मुफीद दवा मिल गई। वे उसी क्षण वहां से उठ गये। उन्हें इस बात का ख्याल ही नहीं रहा कि राजाराम उनके पास बैठा है। वे सीधे सेठानी के पास गये जौर उससे बोलेरमेश की माँ ! रमेश बहुत वर्षों से कश्मीर घूमने की बात कह रहा है। चार-पाँच दिन में उसको तैयार कर दो। बहू से पूछ लो। यदि वह चाहे तो किसी नौकर-नौकरानी को साथ ले जा सकते हैं। खर्च-वर्च की कोई परवा नहीं। आखिर उनकी खुशी में ही हमारी खशी है। ___ यह कहते-कहते सेठ जी के आँखों में वात्सल्य के आँसू छलक आये । सेठानी भी उनकी प्रसन्नता से नहाकर इतनी ताजगी से भर गई कि बोल नहीं पाई। उसने रमेश की बहु को बुलाकर सेठजी की बात कही तो वह बोली- नहीं मांसा ! अभी कहाँ कश्मीर जाना है ! अभी तो तुम्हारी तबीयत ही अच्छी नहीं है। जब तुम्हें आराम हो जायेगा तो बाद में सोचेंगे। सेठानी बोली-नहीं बेटी ! मेरी तबियत की क्या बात है ? मैं तो सदा बीमार ही रहती हूँ। घर के काम-धन्धे में घुल-घुल कर मर गई हूं। तुम्हारे अभी खेलने-खाने के दिन हैं । जाओ, खुशी से कश्मीर या जहाँ तुम्हारा जी चाहे घूम आओ । तुम्हारी खुशी ही हमारी खुशी है । हां, किसी बात की तंगी मत देखना । रमेश की बहू सासू के चरणों में झुक गई । श्रद्धा के आँसूओं की दो बूंदों ने सासू के चरणों को गीला कर दिया। यह आर्द्रता उसके ठेठ हृदय तक पहुंच गई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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