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३२ / नए मंदिर : नए पुजारी
है ? और आया भी तो कौन-सी लंका लुट रही है ? अपने भाग्य में लिखा है वह अपने-आप मिल जायेगा। पर आपको कौन कहे ? आप किसी की सुनें तब न !
सेठ जी -हाँ, कोई रोटी जबरदस्ती तुम्हारे मुंह में ठूंसकर चला जायेगा ? जब तक हम जीते हैं, तब तक तुम्हारे लिए कमाते हैं, पर तुमको यह भी अच्छा नहीं लगता । तुमसे तो हमें रोटी-टुकड़े का भी सुख नहीं है । उल्टा हमें ही तुम्हें खिलाना पड़ता है ।
रमेश पिता जी ! आप क्यों यों बिना मतलब बक-बक कर रहे हैं । हमें आपके पैसे की आवश्यकता नहीं है । मुझ पर इतना अहसान न लादें । हमारे भाग्य में जो लिखा होगा, वह अपने आप मिल जायेगा |
इतना कहकर रमेश तो तीर की तरह चला गया । पीछे से सेठजी दांत पीसकर रह गये । इतने में कुम्हार का एक छोकरा अपने गधों पर मिट्टी भरकर उधर से निकला । उसके एक गधे के गले में ट्रांजिस्टर लटक रहा था । उसमें गाना चल रहा था - "तेरे बिना भी क्या जीना ।" छोकरा मजे से उसकी धुन में धुन मिलाकर गा रहा था। एक क्षण के लिए सेठ जी अपनी बात को भूल गए और गीत की उस पंक्ति और छोकरे की एक्टिंग में उलझ गए । वे राजाराम से कहने लगे - देखो राजाराम ! क्या जमाना आ गया है ? कुम्हार भी आजकल गधे के गले में ट्रांजिस्टर लटकाकर गाने सुनते फिरते हैं ।
राजाराम ने भी उसके सुर में सुर मिलाकर कहा'हां सेठ जी ! बस अब कलियुग में कोई कसर नहीं रह गई है । देखिये न ! इस छोकरे का बाप पीछे चल रहा है और छोकरा मजे से गाता-बजाता जा रहा है । साले को अपने बाप की शर्म नहीं है । हम तो अपने जमाने में अपने बाप के सामने आंख उठाकर भी नहीं देखते थे, पर आजकल सबकुछ farड़ गया ।
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गधों की कतार के पीछे ही पीछे छोकरे का बाप चल रहा था । उसने यह संवाद सुना तो बोल उठा - सेठ जी ! दो दिन की इस जिंदगी में आदमी जितना हंस ले, उतना अपना है । आखिर एक दिन सभी को यहां से चले जाना है । इस छोकरे की बेचारे की यही अवस्था है कि थोड़ी
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