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________________ २८ / नए मंदिर : नए पुजारी लगे। उनकी टोकरियां जल्दी-जल्दी भरने लगीं। तब उनके साथ कुछ अधेड़ तथा प्रौढ़ औरतों को भी में वहाँ देखने लगा। एक दिन मैंने देखा कि खलासी कुछ बिना जले कोयले के बड़े-बड़े पत्थर ही नीचे फेंक रहा है । किशोरियां उन्हें बड़ी मुश्किल से उठा पा रही थीं। प्रौढ़ाएं उनका सहयोग कर रही थीं । वे जल्दी-जल्दी उन्हें अपनी टूटी हुई टोकरियों में भर कर पटरियों की सीमा को पार कर रही थीं। मुझे देखकर एक क्षण खलासी चौंका । किशोरियां और प्रौढ़ाएं भी चौंकी। मैं भी चौंका । पर मैं उनकी गरीबी को देखकर चुप हो गया। मैं सोचने लगा कि यदि मनुष्य को जीने का अधिकार है तो दो रोटी प्राप्त करने का अधिकार भी होना चाहिए । यद्यपि उस अवसर पर राष्ट्रद्रोह की बात भी मेरे मन में आई, पर उनकी गरीबी के सामने मेरी कठोरता पिघल गई और मैं सारी बात को अनदेखा कर आगे निकल गया । फिर तो धीरे-धीरे यह क्रम भी बढ़ने लगा । खलासी रोज-रोज बड़े-बड़े कोयले इंजन से नीचे खिसकाते और किशोरियां तथा प्रौढ़ाएं उन्हें अपनी टोकरियों में भरकर जल्दी-जल्दी भाग जाती । अब उन्हें मेरा कोई डर नहीं रह गया था । वे समझने लगीं थी कि मेरी ओर से उन्हें कोई खतरा नहीं है । I पहले तो मैंने सोचा कि ड्राइवर तथा खलासी इनके सम्बन्धी होंगे, जो अपने गरीब रिश्तेदारों की मदद करते हैं, पर एक दिन मैंने देखा कि एक प्रौढ़ा हाथ में एक-एक रुपये के कुछ नोट लिये खलासी से कुछ बात कर रही है । खलासी कह रहा है — “इतने से काम नहीं चलेगा । मैंने इतने कोयले गिराए हैं, पांच रुपये देने होंगे ।" प्रौढ़ा ने एक नोट और निकाला । खलासी ने उसे बड़ी रुखाई से अपने जेब में डाल लिया और इंजन जोरदार सीटी देता हुआ दौड़ गया । अब तो इस दृश्य को मैं रोज-रोज देखने लगा । पटरी के पास रेलवे पुलिस की एक टपरी (hut ) थी । उसमें दो सशस्त्र रेलवे पुलिस हर क्षण ड्यूटी पर तैनात रहते थे । एक दिन मैंने देखा कि पुलिस वालों ने उन पौढ़ाओं और किशोरियों को पकड़ा । किशोरियां तो भाग गयीं, पर प्रौढ़ाएं निश्चल मुद्रा में खड़ी रहीं । पुलिसवालों ने उनके पास आकर उन्हें धमकाना शुरू किया - यह कोयला तुम्हारे बाप का है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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