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________________ कमीशन रेलवे पटरियों के साथ-साथ चलने वाली पगडंडी से होकर आफिस जाना मेरा रोजमर्रा का कार्य है। अब तो यह रास्ता मुझसे इतना परिचित हो गया है कि शायद आंखें मींचकर भी निकल जाऊं, पर प्रारम्भ में इतना सहज नहीं था । बीच में कुछ खाली माल-डिब्बे पड़े रहते हैं । कुछ इंजन भी ईंधन पानी के लिए खड़े रहते हैं। समय-समय पर गाड़ियों की साइडिंग भी होती रहती है, पर यह रास्ता थोड़ा शार्टकट है, इसलिए मैं कई वर्षों से इधर से ही आता-जाता हूँ। प्रारम्भ में जब मैंने इस राह से आना-जाना शुरू किया, तो देखा कि कुछ किशोरियाँ इंजन द्वारा खाली किये गये राख केढेर में से कुछ अधजले कोयले बीन रही हैं। मैंने सोचा, इस वेस्टेज से भी कितने जीव पल रहे हैं। भले ही रेलवे वालों को राख के ढेर से कोई मतलब नहीं, पर खोजने वाले कहाँ-कहाँ कैसे-कैसे अर्थ खोज लेते हैं ? कोयलों की कालिख से किशोरियों के फटे हुए कपड़े ही काले नहीं हो जाते थे, अपितु पसीने से लथपथ उनके चेहरे भी जगह-जगह से काले हो जाते थे। उनकी आंखों में एक अजीब प्रकार की निराशा मुझे स्पष्ट दिखाई देती थी। कभी-कभी जब राख के ढेर में से कोई बड़ा अधजला कोयला मिल जाता, तो उनकी आंखों में ऐसी चमक आ जाती, मानो उन्हें कोई खजाना मिल गया हो । मुझे भी उनकी खुशी से थोड़ी खुशीहोती। मुझे लगता, मनुष्य एक दूसरे के साथ कितनी सूक्ष्मता से बंधा हुआ है। धीरे-धीरे मैंने देखा कि इंजन के खलासी आवश्यकता से पहले ही इंजन को खाली कर रहे हैं । इस सिलसिले में काफी अधजले कोयले नीचे गिर जाते हैं। इससे किशोरियों को कुछ अधिक कोयले मिलने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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