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भूल / २३ महेश को समझाना कठिन होगा। अत: वे शांत भाव से लौट आए। सुशीला से बोले-बच्चों को घर पर ही छोड़ो और अपन चलो।
. सुशीला को भी डर था कि यदि हम नहीं गए तो अनिल और उसकी पत्नी हमसे जबाब तलब किए बिना नहीं मानेगे। घर का झगड़ा मित्रों के सामने खुले बिना नहीं रहेगा, इसलिए बिना मन उसको तैयार होना पड़ा।
महेश के लिए माधुरी को भी घर पर ही छोड़ दिया गया। महेश का गुस्सा अभी तक शान्त नहीं हुआ था। माधुरी उसके पास गई और उसे मनाने लगी। वह उसके बालों में हाथ फेरने लगी तो महेश ने उसे एकदम झटक दिया। माधुरी उसके पास बैठ गई। एक ओर महेश से बदला लेने से खुश थी तो दूसरी ओर सिनेमा नहीं जाने तथा महेश के जोरदार मार पड़ने से दुखी भी थी।
_रो लेने के बाद जब महेश थोड़ा शांत हुआ तो माधुरी ने अपना मुंह उसके पास ले जाकर पूछा – क्या बहुत जोर से लगी है ? महेश : (अपना मुँह फुलाकर) और क्या प्रेम की पुचकार थी। देख
गेंद कितनी जोर से हिट हुई । पाँचों अंगुलियों के निशान पड़े
होंगे।
धीरे-धीरे बातचीत थोड़ी सहज हुई तो माधुरी बोली-देख, आज यह मार तुम्हारे अपने कारनामों से ही पड़ी है। महेश चौंक कर बोला - क्यों, मैंने क्या गलत कारनामें किए ? पापा मेरे पर झूठा इलजाम लगाते हैं । मैंने आज क्या कभी भी एक पैसा नहीं चुराया। माधुरी : पर, तुमने मम्मी से मेरी झूठी शिकायत नहीं की थी ? महेश : कौन-सी झूठी शिकायत ? माधुरी : वाह, अभी भूल गए । तुमने ही तो मम्मी से कहा था कि फूल
मैंने तोड़ा था। तुमने मेरा झूठा नाम लिया तो मैंने भी
तुम्हारा झूठा नाम ले लिया। महेश : अरे माधुरी ! यह सब तेरी शरारत है । देख लेना, मम्मी को
आने दे । मैं सब सच्ची-सच्ची बात कह कर तेरी ऐसी पिटाई कराऊंगा कि तुझे अस्पताल जाना पड़ेगा। बस, अब आने दे
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