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२२ / नए मंदिर : नए पुजारी
आखिर पापा ने कहा-अब टिकट आ गए होंगे तो उनका क्या होगा ! मैं अनिल को कहकर आया हूं। वह प्लाजा पर हमारा इतजार कर रहा होगा।
__सुशीला ने कहा - तुम चले जाओ। 'पापा : पर टिकिट तो चार होंगे। सुशीला : चार होंगे तो मैं क्या करूं ? तुमने तो सारा वातावरण ही
उत्तेजित कर दिया है। पापा : पर तू ने तो भी अभी माधरी को मारा था। यों मारने से बच्चे
सुधरते हैं क्या? सुशीला : हाँ, मुझे ही उपदेश देते हो। अब तुम ही अपने राजकुमार
को मनाकर लाओ। 'पापा : भई, अब गुस्से में जो हो गया सो हो गया । चलो, महेश को
मना कर लाओ। जल्दी करो, अनिल बोर हो रहा होगा। सुशीला : अब मैं क्यों मनाऊं? मारते तो तुम हो और मरहम-पट्टी
करनी पड़ती है मुझे। मैं नहीं जाती। तुम्हें ही मनाना है तो
बनाओ। पापा महेश को मनाने अन्दर गए, पर महेश तो फफक-फफककर रो रहा था । पापा को देखकर यह और भी जोर से रोने लगा। पापा ने कहा - देखो महेश यह चोरी की आदत अच्छी नहीं है। तुम्हें पैसे चाहिए तो मांगकर लो। हम कब मना करते हैं। चलो, अब अपनी गल्ती स्वीकार करो और सिनेमा देखने चलो।
यह सुनते ही महेश और ज्यादा उग्र हो गया। वह रोता हुआ बोला---पापा ! मैंने पैसे नहीं चुराये हैं।
पापा को एक बार गुस्सा आया । वे महेश पर दो-चार हाथ अजमाने वाले ही थे कि उनका पितत्व जाग उठा। सोचने लगे- आज तक महेश ने कभी पैसे नहीं चुराये और न कभी झूठ बोला, तो आज यह सब कैसे हो गया ? उन्होंने अपने आप को काबू में किया और स्थिति पर विचार करने लगे। इतने में महेश कड़क कर बोला – नहीं जाना है मुझे सिनेमा। आपको जाना है तो जाइए । पापा समझ गए कि उत्तेजना में
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