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________________ पापा : देखो, ऐसा मत बोलो। मुझे अच्छी तरह याद है कि मैंने एक रुपये की चिल्लर अपनी जेब में छोड़ी थी। तुम सदा मेरी तलाशी लेती रहती हो। मैं अपने जेब खर्च में से जो बचाता हं वह भी तुम हजम कर जाती हो। सुशीला : मैं हजम करने वाली कौन हूँ ? तुम्हीं जब भूल जाते हो, तो मैं क्या करू ? - इतने में माधुरी अंदर आ गई। उसने मां बाप का संवाद सुना तो खुश हो गई। अचानक उसे शरारत सूझी। अभी वह महेश द्वारा करवाए गए अपने अपमान को भूली नहीं थी। पापा पर उसका पूरा साम्राज्य था। उसने सोचा कि महेश से बदला लेने का यह सुन्दर मौका है। अतः वह धीरे से बोली-पापा ! मैं बताऊं, पैसे कहाँ गए ? पापा ने आश्चर्य से कहा- बताओ। माधुरी : पापा ! पैसे तो महेश निकाल कर ले गया था। पापा : (पत्नी की ओर घूरते हुए देख कर) देखा अपने शाहजादे के कारनामे ! अभी से जनाब चोरी करना सीख गए हैं। और उसी गुस्से में उन्होंने कड़क कर महेश को पुकारा। महेश के अन्दर प्रवेश करते ही उन्होंने महेश को ऐसा जोरदार थप्पड़ मारा कि उसका मुह सूज गया। एक ही थप्पड़ में वह तो बिचारा जमीन पर बैठ गया। पापा उसकी और मरम्मत करते, इससे पहले ही सुशीला ने आकर महेश का बचाव किया। पापा बोले -तू ही इसको शह देती है, इससे यह दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा है, पर याद रखना इस तरह यह शाहजादा सारे घर को तबाह करके रख देगा। आज घर का वातावरण बड़ा तनावपूर्ण हो गया। पापा का भी मूड बिगड गया, मम्मी का भी मूड बिगड़ गया, महेश का भी मूड बिगड़ गया, माधुरी का भी मूड विगड़ गया। महेश तो अन्दर जाकर फफकफफककर रोने लगा। उसने सिनेमा जाने से भी मना कर दिया । सिनेमा जाने का समय हो गया पर कोई जाने को तैयार नहीं था। सार। मजा ही किरकिरा हो गया था। सभी एक दूसरे के दोषों को देख रहे थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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