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२० / नए मंदिर : नए पुजारी माधुरी : मुझे क्या पता। महेश : देख माधुरी ! मुझे बेवकूफ मत बना। तूने दोपहर को मुझे
नहीं कहा था कि मैं आज शाम को फूल तोड़ लूंगी ? माधुरी : कहा तो था पर मैं तो तेरे साथ मजाक कर रही थी। क्या तू . ने मुझे नहीं कहा था कि मैं सबेरे ही फूल तोड़ कर छिपा दूंगा। महेश : पर तू ने तो सवेरा होने ही नहीं दिया, पहले ही फूल गायब
कर दिया। माधुरी : नहीं, महेश! मैं विद्यामाता की सौगंध खा कर कहती हूं कि मैंने
फूल नहीं तोड़ा। महेश : तो फिर किसने तोडा? माधुरी : हमारे पड़ोस वाली चम्पा काकी भी तो कई बार फूल ले
जाती है। महेश : पर तो भी तुमने चिढ़ाया, इसका फल तो मिल ही गया। मैंने
तुमसे हजार बार कह दिया कि मुझसे मत भिड़ाकर । मैं तेरी चटनी बनवा दूंगा, पर तू सदा मेरे से अकड़ती है। इसी का यह परिणाम है। अब भी तेरे में अक्ल है तो समझ जा । अब
मेरे से कभी मत अकड़ना। माधुरी : पर तू भी तो मेरे साथ अकड़ता है। तू तो मेरे साथ विश्वास
घात करता है। तू ने उस दिन भी मेरी पिटाई करवाई थी।
__ अब देख लेना, मैं भी इसका बदला कैसे लेती है ? मैं भी तेरा झूठा नाम लगाऊंगी और पापा से तेरी पिटाई कराऊंगी।
__यह कहते-कहते माधुरी की आंखे भर आई। महेश कुटिलता से हंसता हुआ बाहर भाग गया। इतने में अंदर से पापा की आवाज गूजी-अरे, मेरी जेब में पैसे थे, कहां गए ? सुशीला : तुम्हारी जेब में पेसे होते भी हैं, जो कहीं जाएं ? पापा : वाह ! मुझे बेवकफ बना रही हो। सुबह ही में अपने कमीज
में एक रुपये की चिल्लर छोड़ कर गया था। सुशीला : छोड़ कर जाते तो मिल जाते। यहां कोई जादूगर तो हैं नहीं,
जो तुम्हारे पैसे उड़ा ले जाए।
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