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भूल | १६ यों एक के बाद एक न जाने कितनी बातें हो गई। फिर तो वे घर वापस भी चले आए। अपना-अपना होम वर्क किया, खाए-पिए और खेलेकूदे। इसी तरह शाम हो गई। मम्मी ने उन्हें बताया कि आज जल्दी तैयार हो जाओ। आज हमें सिनेमा देखने जाना है। अतः वे जल्दी ही नहा-धोकर तैयार हो गए। मम्मी ने भी स्नान किया। अपनी चोटी गूंथी। फिर उसमें गुलाब का फूल लगाने के लिए बगिया में आई, पर उसे बड़ा
आश्चर्य हुआ जब गुलाब के पौधे पर कोई फूल ही नहीं दिखाई दिया। गर्मी के मौसम में यों ही फूल कम होते हैं । उसभ भी एक मात्र फूल गायब देखकर मम्मी झल्ला गई। मन ही मन कहने लगी – रोज फूल नहीं लगाती । कभी-कभार जब बाहर जाने का काम पड़ता है, तो शौक आता है। कल तो एक फूल दिखा था, पर ये छोकरे फलों को कहां टिकने देते हैं । उसने गुस्से में ही महेश को आवाज दो--महेश, ओ महेश !
एक विनीत बच्चे की तरह महेश झट मम्मी के सामने आकर खड़ा हो गया। मम्मी ने पूछा-अरे, यह गुलाब का फूल कहां गया।
अचानक महेश को दोपहर की माधुरी की बात याद आ गई। उसने सोचा, सचमुच माधुरी ने ही फूल तोड़ा होगा । वह बड़ी बदमाश है। उसे शिक्षा देने के लिए वह बोल पड़ा-मम्मी ! फूल तो माधुरी ने तोड़ा है। मम्मी झल्लाई हुई तो थी ही अत: बिना कुछ विशेष पूछ-ताछ किए अंदर आ गई । संयोग से माधुरी दरवाजे पर ही खड़ी थी। मम्मी ने कुछ कहा न सुना, माधुरी को एक थप्पड जड़ दिया। माधुरी को बिचारी को पता ही नहीं चला कि उसे यह थप्पड़ का उपहार क्यों मिला; वह हक्की-बक्की सी देखती रह गई। मम्मी अंदर चली गई । इतने में महेश अंदर आया। उसने माधुरी को चिढ़ाते हुए कहा-ले, मेरे से तकरार करती है तो चख इसका मजा । गुलाब का फूल तू ने ही तोड़ा था ना! मैंने कहा था, मेरी बात मान जा, फूल मुझे लेने दे, पर तू तो लाट साहब हो रही है। मेरी बात कैसे मानेगी! पर देख, तू ने मुझे फूल नहीं लेने दिया, इसका फल. तुझको मिल गया। अब आगे मुझसे कभी मत लड़ना। माधुरी : पर मैंने तो फूल तोड़ा ही नहीं। महेश : तो फिर किसने तोड़ा ? |
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