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१६ / नए मंदिर : नए पुजारी
हैं, फिर भी कहते हैं कि हमारे पास कुछ नहीं है। तांगे वाला-बाबा ! जो कुछ हो तुम्हारा । मेरी तलाशी लेलो।
इतने में कुछ लोग इकट्ठे हो गए। पुलिस ने मामले को समेटते हुए तांगे का मुह मोड़ लिया। तांगे वाला बिचारा बहुत गिड़गिड़ाया, पर पुलिस पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। थाखिर चालान हो गया। सब्जी वालों ने अपनी सब्जी नीचे उतार ली। घोड़ा पशु-चिकित्सालय में चला गया। तांगे वाला बिचारा रोता रह गया । उसे आदेश मिला कि तीन दिनों बाद कोर्ट में हाजिर हो जाए।
घोड़े के अभाव में तांगेवाला खुद तांगे में जुत कर उसे खींचने लगा। मन में गुस्सा, अपमान, चिन्ता आदि उमड़ रहे थे। वह यंत्र की तरह बेसुध होकर चल रहा था कि इतने में पीछे से एक स्कूटर की टक्कर लगी और उसका कन्धा छिल गया, उसमें से खून बहने लगा। पीड़ा से करहाते हुए वह अपने घर की ओर चल रहा था। घर आते ही खून से रंगे कपड़े देख कर पत्नी ने कहा-यह क्या कर आए हो? घोड़ा कहां है ?
तांगे वाले के मुंह से एक ही शब्द निकला-चालान; और वह फूटफूट कर रोने लगा। पत्नी ने उसे ढ़ाढ़स बंधाया। कपड़े बदले। उसके बाद और दो दिनों तक वह खाट पर पड़ा रहा। तीसरे दिन कोर्ट में जाना आवश्यक था। क्योंकि यदि वह नहीं जाता तो घोड़े का हाथ से निकल जाना स्पष्ट था। अत: वह जैसे तैसे कर मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर हुआ। पुलिस ने सारा मामला मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किया। तांगे वाला बिचारा कुछ नहीं बोल सका और उस पर पचास रुपये फाइन हो गए, यह सुनते ही उसकी आंखों में आंसू छलक आए और अपने कन्धे पर से कपड़ा हटाते हुए बोला-साहब घोड़े की पीठ पर घाव हो जाने पर उसे तो किसी अस्पताल में भी भेजा जा सकता है, पर क्या मनुष्य की पीठ पर घाव हो जाने पर उसे किसी अस्पताल भेजने का प्रबन्ध है ? और एक ही साथ उसने अपनी सारी स्थिति का चित्र कोर्ट में खींच दिया। सारे लोग क्षण भर के लिए विस्मित से हो गए । मजिस्ट्रेट ने देखा कि उसका घाव रिस रहा है, पर कानून की धाराओं के सामने वह परास्त था। अतः फाइन में कोई भी रियायत नहीं हो सकी। घाव रिसता ही रह गया।
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