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रिसते घाव | १५
इन तांगों को कौन पूछता है ? सुबह के समय में ही दो पैसे हो जाते हैं, फिर तो दिनभर खाली बैठा रहता हूं। आज कुछ बोझ ज्यादा हो गया है । माफ करो । आगे कभी इतना बोझ नहीं लादंगा। ___ पुलिस के मुखिया ने आंखे निकालते हुए कहा-तुम वेवकूफों को चाहे कितना ही समझाओ अक्ल आती ही नहीं। रोज कहते हो ऐसा नहीं करूगा, पर करते सदा ऐसा ही हो । यदि सरकार ध्यान न दे तो तुम लोग किसी पश को जिन्दा ही नहीं छोड़ो'. और वह घोड़े की पीठ देखने लगा। रोज-रोज जीन रखने से उसके घाव हो रहे थे। थोड़ा थोड़ा खून भी उसमें से निकल रहा था। बोला-देखो, यह क्या हो रहा है ? घोड़े के स्थान पर तुम्हें जोता जाए तो पता चले कि दर्द क्या चीज होती है।
तांगे वाला- अरे बाबा ! मैं तो लदा हुआ हूं। गृहस्थी की गाड़ी में अकेला हूं। बाल-बच्चेदार आदमी हूं। रोज सात पेट खाने के लिए तैयार रहते हैं। उनमें कुछ न डाल तो कैसे काम चले ? पैदा कुछ है नहीं ; मंहमाई ने कमर तोड़ रखी है । किसी तरह उधार ले कर यह तांगा खरीदा है। उसे भी अब तुम मत चलाने दो।
पुलिस-हम तांगा चलाने से मना करते हैं ? सब लोग चलाते हैं, तुम भी चलाओ। आज कल तो तुम लोग खूब पैसा पीट रहे हो। (धीमे) कुछ हमारे चाय-पानी का भी तो व्यवस्था करो।
तांगे वाला- साहब ! मेरे गले की सौगन्ध जो पैसा जुड़ रहा हो। सुबह-शाम सदा सिर पर सवार रहती है। अब आपकी क्या ब्यवस्थ करू? यह एक अठन्नी जेब में है, इसे तुम लेलो।
पुलिस-हू''आठ आना ? जानते हो, चालान हो गया तो कितने आठ आने भरने पड़ेंगे ?
तांगे वाला पुलिस के पैरों में गिर पड़ा। कहने लगा-मुझ गरीब को मत सताओ। मेरे पास इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है । घर पर बच्चे बीमार है। चालान हो गया तो मर जाऊगा।
पुलिस-इसलिए तो हम तुमसे कह रहे है । तांगे वाला--पर क्या करूं ? मेरे पास इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है । पुलिस--हमने तुम्हारे जैसे बहुत देखे हैं। पट्टे पैसे से जेबें भरे रहते
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