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रिसते घाव
सब्जी मण्डी से एक टांगा (रेड़ा) सब्जियाँ भर कर आ रहा था। सात-आठ आदमी भी उस पर बैठे थे। घोड़ा बिल्कुल मरियल सा था, पर फिर भी तांगे वाला चाबुक मार-मार कर उसे दौड़ाए जा रहा था । पुल मिठाई तक आते-आते वह जरा टिठक गया। उसने देखा सामने नीली पगड़ी वाले (बेरहमी के) कुछ पुलिस खड़े हैं। ताँगेवाला तत्क्षण नीचे उतर कर दूसरे लोगों से भी नीचे उतरने का आग्रह करने लगा। एक आदमी ने पूछा-क्यौँ, क्या बात है ? उसने बताया--सामने नीली पगड़ी वाले पुलिस खड़े हैं। तांगे में ज्यादा भार देखेगें तो मेरा गलान कर देगें अतः जल्दी-जल्दी नीचे उतर जाओ। सभी नीचे उतर आए। पर जैसी कि आशंका थी तांगे के पुल पर पहुंचते ही पुलिस ने उसे रोक लिया। घोड़े को देखकर बोला-कितना सामान लाद रखा है ?
तांगे वाला-साहब ! यह तो आपके सामने ही है। पुलिस-जानते हो साढ़े सात मन से ज्यादा बोझ लादना गैरकानूनी
तांगे वाला—साहब ! बहुत ज्यादा तो नहीं है।
पुलिस-तो फिर क्या बीस मन लादना चाहते थे ? पंदरह मन तो बोझ लाद रखा है इतने सारे आदमी बैठे थे सो अलग। तुम कोई आदमी हो या राक्षस । लगते तो भले से हो, पर हो कसाई से भी ज्यादा निर्दयी। वह तो एक बार में ही मार देता है। तुम इसे तिल-तिल जलाकर मारोगे। __ ताँगे वाले ने हाथ जोड़कर कहा-साहब ! क्या करू ? किसी तरह गुजारा तो करना ही होता है। बसों और टम्पुओं के हो जाने के बाद
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