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________________ ताबूत । १३३ ही ? आगे ही घर में सामान अधिक है और स्थान कम । हमें यह पेटी नहीं चाहिए । सेठजी ने कहा- तुम्हें जरूरत नहीं है तो मौका आने पर बेच देंगे । यो ब्याज के पैसे नहीं आते थे, पेटी के बहाने पैसे भी आ गए और अब पेटी के सौदे में भी थोड़ा-बहुत और कमा लेंगे । स्थान की कमी के कारण पेटी को घर के पिछवाड़े में रखवा दिया गया। सेठजी अपनी तजबीज पर परम प्रसन्न थे । पेटी को घर में आये दो-चार दिन ही हुए थे । एक दिन सेठजी के दो बच्चे तथा पड़ौसी का एक बच्चा लुकाछिपी का खेल खेल रहे थे । से के बच्चे छिपने के लिए स्थान खोजते खोजते पेटी के पास आये । बड़े लड़के ने कहा- चलो, अपने इस पेटी में छिप जायेंगे। हमारा साथी हमें ढूंढ़ नहीं पाय | दूसरे लड़के को भी बात जँच गई तो उन्होंने पेटी को खोला। यद्यपि पेटी का ढक्कन भारी था, पर छिपने की सुरक्षित जगह देखकर दोनों ने मिलकर ढक्कन को अन्दर से बन्दकर लिया । संयोग की बात थी कि ऊपर से कपाट बन्द होते ही बाहर की कंडी लग गयी । अब तो बच्चे बड़े घबराये, पर कोई इलाज नहीं था । उन्होंने जोर भी लगाया, पर पेटी का खुलना असंभव था। वे जोर-जोर से चिल्लाये, पर पेटी इतनी संगीन बनी हुई थी कि उनकी आवाज बाहर नहीं आ सकी । उनका साथी लड़का उन्हें खोजते खोजते इधर आया, पर वह सोच भी नहीं सका कि पेटी के अन्दर भी कोई बैठ सकता । अतः वह बिचारा उन्हें ढूंढ ढूंढ़कर हार गया । आखिर यह समझ कर कि बच्चे अपने घर में चले गए होंगे, वह भी अपने घर लौट गया । थोड़ी देर तक बच्चे रोए -चिल्लाए, पर उनकी कौन सुनने वाला था ? अन्तत: प्राणवायु के अभाव में उन्होंने बन्द पेटी में ही अपने प्राणत्याग दिए । शाम तक भी जब बच्चे नहीं आये, तब सेठानी को चिन्ता हुई । उसने सेठजी से कहा । सेठजी ने इधर-उधर खोज करवाई, पर बच्चे कहीं न मिले। आखिर पुलिस को सूचना दी गई। गांव का कोना-कोना छान लिया गया । कुंए-बावड़ियां छान ली गई, पर कहीं पर भी बच्चे नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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