SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२ / नए मंदिर : नए पुजारी से कम ब्याज तो भर देना चाहिए। यह कहते कहते सेठजी ने पेटी पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। हीरा-मालिक पैसा तो मेरे पास नहीं है। यदि आपको पसंद हो तो यह - पेंटी ही ले जाओ। सेठ--यह तो ठीक है, पर इसमें हम तुम्हारी लागत के ही पैसे देंगे। वैसे तुमको लगता ही क्या है ? काठ के टुकड़े तो इधर-उधर बचते हैं वे ही जोड़ लेते हो। मेहनत के पैसा हम देंगे नहीं। जो कील-काँटो आदि के पैसे लगते हों वह बता देना और कल-परसों जब भी फुर्सत हो यह पेटी घर पहुंचा देना। सेठजी ने यह सब इतनी सफाई और आत्म-विश्वाश से कहा कि हीरा विचारा कुछ नहीं बोल सका । अक्सर मनुष्य का अज्ञान ही उसमें हीन भाव भरता हैं और वह बिना मतलब दूसरों का बोझ अपने सिर पर ढोता रहता है। सेठजी के चले जाने के बाद हीरा के बेटों ने थोड़ा प्रतिरोध किया कि हम यों कौड़ी के मूल्य अपनी गाढ़ी कमाई नहीं दे सकते, पर हीरा ने उनकी एक नहीं सुनी। वह कहने लगा--तुम इस बात को नहीं जान सकते कि सेठजी ने संकट के क्षणों में मेरा कितना उपकार किया था। मैं इस बात को जन्म भर नहीं भूल सकता । इन्होंने मेरे बाप के मृत्यु-भोज के लिए मुझे पैसे दिये थे। इसलिए मेरे जीते जी तो निभा लेने दो। मेरे मर जाने के बाद तुम जो चाहो करना। बेटों ने कहा-काका ! पर आप तो हमारा भी पेट काटते हैं। हीरा ने आवेश में उत्तर दिया--मैं तुम्हारा पेट कहां काटता हूँ ? अभी तक तो मेरे हाथ-पाँव चलते हैं अतः मैं जो चाहं करूगा। जिस दिन तुम्हारे टुकड़े का मुंहताज हो जाऊँ उस दिन तुम अपनी मनमानी करना । मैंने तुम्हें पाल-पोस कर बड़ा किया है। अबतक तो तुम्हारे पंख भी पूरे नहीं आये हैं, उससे पहले ही, मझ से जबान लड़ाने लगे हो, यह अच्छा नहीं। अपने बाप के आगे बच्चे अधिक विरोध नहीं कर सके । अन्ततः हीरा वह पेटी सेठजी के घर पहंचा कर आ गया। घर में पेटी आई तो सेठानी ने कहा--यह क्या ताबूत-सा उठा लाये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy