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________________ ताबूत / १३१ तो इतनी बढ़ गई है कि पूछो मत। हर आदमी हराम का खाना चाहता है । सरकार का छोटे से छोटा नौकर भी मुंह बाये खड़ा है । उस की भेंटपूजा न हो तो गाड़ी स्टेशन से भी आगे न चले । अब देखो - कहते हैं, सरकार गरीबों को लोन देती है, पर क्या अपना सिर लोन देती है ! बजट में जितनी रकम लोन में रखी जाती है, उसमें से आधी तो नेताओं में बांट जाती है । फिर जो थोड़ी-बहुत बचती है - उसे ऑफिसर खा जाते हैं । और जो थोड़ी बहुत बचती है वह जातिवाद, स्वार्थवाद या भाईभतीजेवाद में बंट जाती है । तुमको पता है, रामधन ने खेती के लिए सरकार से लोन लिया था, पर पानी पूरा नहीं गिरा । फसल ही पैदा नहीं हुई तो वह लोन कहां से चुकाता ? पर सरकार यह सब कुछ नहीं देखती । उसने तो बेचारे का खेत ही निलाम करवा दिया है। उधार तो हम भी देते हैं, पर ऐसा तो नहीं करते। पहले तो सरकार के कानून कायदे इतने पेचीदे हैं कि बिचारा गरीब उन्हें समझ ही नहीं पाता । यदि वकीलों या सरकारी ऐजेंटो के माध्यम से समझता है, तो उसकी यह गति होती है । हम लोगों के पास कोई कानून कायदा नहीं है। जरूरतमंद आधी रात को आता है और पैसे लेकर चला जाता है । हम कभी उसे निराश नहीं करते | थोड़ा-बहुत ब्याज ले लेते हैं, तो सरकारी गुर्गे कहते हैं कि बनिया हमें चूसता है पर सच्चाई यह है कि हम गरीब को नहीं चूसते, यह सरकार ही सबको चूस रही है । हीरा - आप ठीक कहते हैं सेठजी ! सरकार तो आजकल भ्रष्टाचार से भरी पड़ी है । सेठजी -- अब तुम ही देखो । तुमको कितने वर्ष हो गये हमसे रुपया लिए | तुम्हारे बाप के मृत्यु भोज के समय लिए थे । मेरा ख्याल है कि उसे तीस वर्ष तो हो ही गए होंगे। तुम रात को आये थे । मैंने तुम्हें कहीं चक्कर लगवाये ? केवल तुम्हारे अंगूठे के निशान के भरोसे पर रकम निकालकर दे दी । क्या सरकार ऐसा कर सकती है ? हीरा - नहीं मालिक ! बात करते करते ही सेठजी ने अपना असली तीर छोड़ दिया बोले—पर भाई ! तुम्हारा इस वर्ष का ब्याज नहीं आया है । कम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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