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________________ १३० / नए मंदिर : नए पुजारी सेठजी ने पुलिस से मिलकर सबको ठिकाने लगा दिया । दुनियां को दिखाने के लिए उन्होंने वेकाम की कुछ बन्धके वापस भी की थी और अव, जबकि इमर्जेसी उठ गई तो सेठजी का धंधा दिन दुगना रात चौगुना हो गया। वे अकसर कहते कि हर धंधा दिन में चलता है, पर मेरा धंधा दिनरात चलता है। सरकार जितने कानन बनाती , सेठजी उससे पहले रास्ता खोज लेते। सारे गांव में उनकी अक्ल की धाक थी। लोग लुट-पिट कर भी सेठजी को अपना हित-रक्षक मानते । उनसे कर्ज लेते सो तो लेते ही पर उसका अहसान भी मानते । मौंके वे मौके उनका छोटा-मोटा काम भी कर देते और उनकी हाजिरी भी बजाते रहते।। इससे कोई संदेह नहीं कि ऊपर से सेठजी का काम बड़ी सफाई से चलता था, पर बिना परिश्रम की कमाई ने उनको इतना निर्दय बना दिया था कि वे आदमी का खुन क्या हड्डियां तक नहीं छोड़ते । उनकी इस निर्दयता का ऐसा एक ही शिकार था हीरा सुथार । उसने कई वर्षों पहले अपने बाप के मृत्यु-भोज के लिए सेठजी से पैसे लिए थे। इतने वर्षों का ब्याज चुकाते-चुकाते वह दुगना पैसा जमा करा चुका, पर फिर भी मूलधन अभी तक ज्यों का-त्यों था। वह बिचारा मेहनत करता । शरीर पर कपड़ा भी नहीं पहनता । अपने बच्चों तक को कभी चपड़ी रोटी नही खिलाता, पर सेठजी का पेट भरता जा रहा था। एक दिन अचानक सेठजी हीरा के घर की ओर से निकले । हीरा उस समय एक अच्छी बड़ी सी पेटी बना रहा था। उसे देखते ही सेठजी के मुंह में पानी भर आया। उनकी गिद्ध आंखे उस पेटी पर पड़ गई और उसी क्षण उन्होंने अपने बाज जैसे नुकीली पंजे उसमें अड़ा दिए । उन्होंने अत्यन्त मधुर स्वर में हीरा से कहा- वाह भाई ! मैं तुम्हारी कला का लोहा मानता हूँ। क्या चीज बनाई है ! इसका कितना खर्च आ गया होगा ? हीरा ने कहा-मालिक ! खर्च तो आज कल आता ही है ! हर चीज महँगी है। लकड़ी भी महंगी है, कीले और पातियां भी महंगी है। सेठजी-यह तो बिल्कुल ठीक है भाई ! आज हर चीज के दाम आसमान को छ रहे हैं। असल में हमारी सरकार ही खराब है। इससे तो राजेमहाराजे अच्छे थे, जो सब लोग आराम से जीते थे। आजकल बेईमानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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