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________________ १२८ / नए मंदिर : नए पुजारी प्रभात ने बड़े भाई को समझाया कि हो सकता है, थोड़े दिन रोक कर रखा जाय तो इसकी कीमत और भी बढ़ जाय, पर सामान्य लोगों के लिए ऐसी कीमती चीजों का रोक कर रखना उपयुक्त नहीं है। बड़े भाई ने कहा-हमें किसलिए रोक कर रखना है । यदि हमें पैसा मिले तो हम अपना धन्धा बढ़ायेंगे । हमें हीरे का जरा भी शोक नहीं है। आप तो जल्दी से जल्दी हमारे पैसे खुले करवाओ। प्रभात ने आखिर मोलभाव करते-करते छह हजार रुपये केरेट के भाव से वह हीरा बिकवा दिया। खरीददार ने एक हजार रुपया कम किया। अत: बड़ा भाई पैंतीस हजार रुपयों के नोट लेकर दुकान से नीचे उतरा । उसने प्रभात को गले लगा लिया। उसे हजार-पन्द्रह सौ रुपये देने चाहे, पर प्रभात ने उससे एक पैसे की दलाली लेना अस्वीकार कर दिया। हालांकि बड़ा भाई इस सारे घटना कांड में साथ था, पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि क्या सचमुच ऐसा हो सकता है। उसे तो लग रहा था, जैसे वह स्वप्न देख रहा है। उसके पैर जमीन पर नहीं टिक पा रहे थे। प्रभात की आंखों में आंसू आ गए। निश्चय ही ये आंसू व्यापारिक दक्षता के नहीं थे, अपितु अपने एक बन्धु की निष्काम सेवा की आंखों से बहकर आये थे। हो सकता है प्रभात ने अपने धन्धे में लाखों रुपये कमाये होंगे, पर जितना आनन्द वह इस प्रसंग में अनुभव कर सका उतना कभी नहीं कर सका। बल्कि जब-जब वह इस प्रसंग को याद करता है तो उसे लगता है जैसे उसने भी अपने हाथों से मानवता की दीवार में एक पत्थर रखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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