________________
एक पत्थर- एक आदमो / १२७
प्रभात ने कहा .. जिसे तुम मामूली अंगूठी समझ रहे हो वह वास्तव में बहुत कीमती है । यह तो संयोग की बात है कि तुम्हें यह साठ-सत्तर में मिल गई, पर इसकी कीमत तीस-चालीस हजार से कम नहीं होगी। यह सुनते ही बड़ा भाई तो विचारा हक्का-बक्का सा रह गया । वह कहने लगा - आपको हम अच्छे मजाक करने वाले मिल गए। तीस-चालीस हजार रुपये यों कोई कचरे में पड़े हैं, जो हमने उठा लिए? हमने क्या हमारे बाप-दादा ने भी कभी तीस-चालीस हजार रुपये नहीं देखे हैं । आप हमारी गरीबी का मखौल न करें।
प्रभात ने जोर देते हुए कहा- मुझे तुम लोगों से मजाक करने का शौक नहीं है । मुझे तो जवाहरात की परीक्षा करने का शौक है, इसलिए मैं तुमसे कह रहा हूं। हो सकता है, मैं नया-नया आदमी हूँ, इसलिए मेरी परीक्षा में कुछ फर्क पड़ जाये । अच्छा हो, हम बाजार में इसकी कीमत करवा लें।
उसी समय वह बड़े भाई को लेकर जौहरी-बाजार में गया । कुछ लोगों को लगा कि मजाक गहरी होती चली जा रही है। कुछ लोगों को लगा कि प्रभात जरूर इसमें अपना कमीशन खायेगा, पर प्रभात ने किसी की परवाह नहीं की। उसने सोचा--- यदि मैं साथ नहीं जाऊंगा, तो शायद जौहरी लोग इन्हें ठग लेंगे। हो सकता है, कोई किसी प्रकार का इलजाम लगाकर इनको फंसा भी दे । इसीलिए प्रभात उनके साथ हो लिया। बाजार में एक प्रसिद्ध जौहरी को वह हीरा दिखाते हुए प्रभात बोलाभाई साहब ! इसकी कीमत कितनी हो सकती है। जौहरी ने हीरे को अंगठी से खोल कर तोला तो वह छह केरट का निकला। हीरा असली और बेदाग था। पर जवाहरात का धन्धा ही ऐसा है कि ट्राई किए बिना आदमी ठगा जाता है। इसलिए वह फिर एक दूसरे नामी जौहरी के पास गया। उसने उसकी कीमत पांच हजार रुपये के रेट बताई। प्रभात ने सोचा एक साथ दो हजार रुपये केरेट भाव बढ़ जाता है तो थोड़ी और ट्राई करनी चाहिए। वह फिर एक तीसरे और अत्यन्त विश्वस्त जौहरी के पास आया। उसने भी उसकी कीमत पांच-साढ़े-पांच हजार रुपये केरेट बताई।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org