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एक पत्थर एक आदमी | १२५
वह लगातार कभी उस बच्चे के हाथ की अंगूठी देखता तो कभी उसके चेहरे को, कभी उसके कपड़ों को देखता तो कभी उसके आस-पास बैठे लोगों को । अंगठी में एक हीरा जड़ा हुआ था,उसे देखते ही प्रभात की यह हालत हो गई थी। यद्यपि हीरे के आस-पास थोड़ा मैल जम गया था, पर फिर भी प्रभात की पारखी आंखों को यह समझते देर नहीं लगी कि यह एक कीमती हीरा है। बच्चे के रंगढंग को देखकर तो लगता था कि शायद यह हीरा नकली है, पर उसकी चमक ही उसके असली होने की घोषणा कर रही थी। इसी उधेड़-बुन में प्रभात मिठाई परोसता हुआ आगे बढ़ गया, पर उसका मन तो हीरे में ही अटका हुआ था। इसीलिए कुछ आगे जाकर उसने कुछ अन्य लोगों से उस बच्चे के बारे में पूछ-ताछ की। पता चला कि बे तीन-चार भाई हैं और रेसकोर्स के पास अपनी छोटी-सी दुकान करते हैं। प्रभात को फिर संशय हुआ। वह सोचने लगा कि या तो मेरा जवाहरात का ज्ञान गलत है या फिर यह हीरा इस बच्चे के पास गलती से आ गया । अपने आपको निःसंशय करने के लिए वह फिर बच्चे के पास आया। कुछ क्षण तक उसने फिर गौर से उस हीरे को देखा । आखिर उसने निश्चय कर लिया कि यह हीरा कीमती है, बच्चा ही इसकी कीमत से अनजान है।
प्रभात ने उसके साथ बैठे हुए एक युवक से पूछा-यह तुम्हारा क्या लगता है ? युवक ने कहा-यह मेरा भाई है । प्रभात ने जरा सावधानी के लहजे में कहा- यह आपका भाई है तो आपको खयाल रखना चाहिए। बच्चों को ऐसे कीमती गहने नहीं पहनाने चाहिए। इतना सुनते ही वह युवक बिदक गया। वह जोर से तो नहीं बोल सका पर अन्दर ही अन्दर फुसफुसाने लगा - ये अमीर आदमी भी बड़े अजीब होते हैं । इनको क्या पड़ी है कि हमारे बीच में टाँग अड़ाते । अंगूठी पहनी है तो हमने अपनो घर की पहनी है, किसी की चुराकर नहीं पहनी है। पर वास्तव में ये बड़े लोग हमें फटी आँख से भी नहीं देखना चाहते । स्वयं तो लाखों रुपयों के गहने पहनकर आते हैं, पर दूसरा यदि कोई मामूली-सा गहना भी पहन लेता है तो उपदेश झाड़ने लगते हैं। अपने पर ये कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाते. पर दूसरों की जरा-सी भी शौक इनको नहीं सुहाती। वास्तव में
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