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________________ आग और आंसू / १२३ करता है । थोड़ा और नजदीक आने पर उसने स्पष्टतः पहचान लिया कि वह उसका बेटा मोहिन्द्र ही है। अब तो एक क्षण में उसका क्रोध ठंडा पड़ गया । न जाने कब उसके हाथ से बंदूक छूट कर गिर पड़ी और न जाने कब वह आकर मोहिन्द्र सिंह से लिपट कर धाड़े मार कर रोने लगा । सारा दृश्य सिनेमा पट की तरह बदल गया । एक क्षण पहले जहां रण-सा छिड़ा हुआ था, दूसरे क्षण वातावरण जैसे बिल्कुल गमगीन हो गया। लोग स्तब्ध होकर पत्थर फेंकना भूल गये और पुलिस फायर करना तथा डण्डा चलाना | मिलखा सिंह तो मोहिन्द्रसिंह से लिपटकर अचेत हो - गया था। पुलिस वालों ने दोनों को उठाकर अस्पताल में पहुँचाया। हवा करने तथा ठण्डे पानी छिड़कने से मिलखा सिंह की मूर्छा जरा टूटी तो उसने सबसे पहले यही पूछा -- बाहर फायर तो बन्द हो गई है ना ? जब उसके साथियों ने बताया कि हां, फायर तो बन्द हो गई है। एकदम मिलखा सिंह को कुछ याद आया और अस्पताल के दरवाजे की ओर दौड़ा। बाहर आकर वह हाथ जोड़कर निश्चल भाव से खड़ा होकर जनता से कहने लगा -- भाइयों ! मैंने आपके निर्दोष पुत्रों को मारा है, मुझे उसका बदला मिल चुका है। यहां मेरा लड़का भी गोली का शिकार हो गया है । वैसे तो अपनी करनी का फल मिल गया है, पर अभी तक कुछ और भी बाकी है । आपको भी यह अधिकार है कि अपने लड़कों की हत्या के बदले में मुझे मारें । मैं आपके सामने तैयार खड़ा हूँ । जनता जो भी दण्ड देगी, मुझे मंज़ूर है । मेरे प्राण आपके कदमों में हाजिर हैं । आप मुझ हत्यारे पर वार कर खत्म कर दीजिये । मुझ जैसे पुत्र हत्यारे को जीने का अधिकार नहीं है । अब मैं यों ही तड़प-तड़प कर मरूंगा, इससे तो यही अच्छा है कि आप मुझे मार दें 1 अब तक जनता का क्रोध भी शान्त हो गया था। जिन आंखों में थोड़ी देर पहले चिनगारियां उछल रही थीं, उनमें अब आंसू बहने लगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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