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आग और आंसू / १२१
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पुलिस के जवानों का खून खौल उठा और उन्होंने बिनाही बड़े आफिसरों की इजाजत के लाठी चार्ज कर दिया। भीड़ को बिखेरने के लिए अश्रु गैस भी छोड़ी ।
लाठियों की मार खाकर लोग एकबार तो इधर-उधर भागे पर अब उन्होंने अस्पताल की बाउन्डरी के बाहर खड़े होकर पत्थर फेंकने शुरू कर दिये । पुलिस के रंगरूट भी उबले हुए तो थे ही, अतः दांत भींचकर गालियां निकालने लगे । फिर जब जनता की ओर से पत्थरों की बौछार असह्य हो गई तो पुलिस ने फायर शुरू कर दिया । इस सारे केस में सरदार मिलखा सिंह को बहुत ही ताव आ रहा था । वह क्रोध से पागल हो रहा था । उसने अपने साथी पुलिस वालों को तो उकसाया ही पर एस० डी० आई० को भी बुरा-भला कह डाला । कहने लगा - आप यहां अन्दर कमरे में बैठे हमें बाहर मैदान में मरवा रहे हैं । आप देखते नहीं, अस्पताल के चारों ओर के कांच फूट गये हैं । अब भी सनसनाते हुए पत्थर आ रहे हैं और आप फायर का आदेश नहीं देते हैं । बस, हम अभी लोगों से निपट लेते हैं । जब लोगों को खून का रंग दीख जायेगा, तो अपने श्राप दुम दबा कर भाग जायेंगे । हम यदि डरते रहे तो आज हमारी खैर नहीं है । आपकी कायरता से एक-एक पुलिस आज जमीन नाप लेगा । हजारों आदमियों के सामने पुलिस के 100 जवानों की क्या बिसात है । अत: आपको फायर करने का आदेश देना पड़ेगा । विवश होकर एस० डी० आई० को फायर के आदेश पत्र पर अपने हस्ताक्षर करने पड़े ।
मिलखा सिंह तो आज जैसे राक्षस ही हो गया था । अचानक उसकी छाती से एक बड़ा-सा पत्थर आकर टकराया । अब तो वह आपे से बाहर हो गया और बिना आकाश में फायर किये उसने अपने रिवाल्वर को जनता की ओर तान दिया । उसके मुंह से बड़े असभ्य शब्द निकल रहे थे । उसका सारा शरीर कांप रहा था । उचक उचक कर वह फायर करता जा रहा था । जनता के गुस्से का कोई पार नहीं था । समुद्र की तरह अपार जनता पुलिस के साथ पत्थरबाजी में व्यस्त थी । कभी पुलिस जनता के पीछे दौड़ती थी तो कभी जनता पुलिस के पीछे । जनता भी निम्नतम शब्दों का प्रयोग कर रही थी । एक ओर जनता के रोष से
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