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आम और प्रांस
मर्डर के एक केस का राज खुलवाने के लिए पुलिस ने हरभजन को इतनी बेरहमी ले पीटा कि एक खून की खोज करते-करते दूसरा खून हो गया। यद्यपि जनता का खयाल था कि मर्डर का असली अपराधी कोई दूसरा ही था। पर राजनीतिक दबाव के कारण असली अपराधी को छिपा दिया गया तथा बेचारे निरपराध हरभजन को मौत के घाट उतर जाना पड़ा । पुलिस ने इस केस में अच्छे हाथ चिकने किये । पर हरभजन की पत्नी एवं छोटे-छोटे बच्चे इतनी असहायता से रो रहे थे कि पास-पड़ोस की जनता का दिल दहल गया। धीरे-धीरे यह आह सारे गांव में फैल गई और जनता पुलिस के विरुद्ध उबल पड़ी। यद्यपि पुलिस ने अपने-आप को बचाने के लिए काफी सुरक्षात्मक कार्यवाहियो करली थी। उसने मरने मे ४ घण्टे पहले डाक्टर से भी यह लिखवा लिया था कि हरभजन की हालत नोर्मल (सामान्य) है। हरभजन से डण्डे के बल पर कई सादे कागजों पर हस्ताक्षर करवा लिए थे, जिन पर कुछ भी लिखकर अपने पक्ष को बेगुनाह ठहराया जा सके; पर अन्तिम निर्णय के समय में, जबकि पुलिस ने हरभजन को अस्पताल में दाखिल कर दिया था, हरभजन को होश आ गया था और उसने रोते-रोते अपनी आप-बीती सम्बन्धियों को सुना दी थी। उसने बताया कि वह बिलकुल बेगुनाह है और पुलिस ने उसे इतनी बुरी तरह पीटा है कि उसका रो-रोआं दुख रहा है और अब उसका बचना मुश्किल है। यद्यपि उसके संबंधियों को भी पहले यह शंका थी कि शायद हरभजन ही असली हत्यारा है, पर अब मृत्यु के किनारे खड़े होकर हरभजन ने जो कुछ कहा, उससे सारी पिछली आशंकायें धुल
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