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१० / नए मंदिर : नए पुजारी
पर परेशानी की बात यह नहीं थी । बाढ़ का पानी क्षण-क्षण बढ़ता जा रहा था। एक लहर आती और एक साथ दो-दो फुट पानी फैल जाता । फिर दूसरी लहर आती और उससे भी भयंकर दृश्य उपस्थित कर देती । और, अब तो बाढ़ का प्रवाह गांव में भी आ चुका था । ढोल
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ने शुरू हो गये । एकाएक आधी रात को खतरे का संकेत सुनकर लोग जाग गये | घर से बाहर निकले तो पता लगा कि भयंकर बाढ़ आ गई है । कुछ लोगों को अभी तक विश्वास भी नहीं हो रहा था कि ऊंचाई पर बसे उनके गाँव में भी बाढ़ आ सकती है । शायद किसी ने ऐसी स्थिति नहीं देखी थी । ऊपर के बांध तड़ातड़ टूट रहे थे । इसी से पानी का यह अकल्पित वेग आ गया था । उसे रोकने के लिए प्रवाह के आगे पत्थर डाले गए । काठ के बड़े-बड़े पट्टे डाले गए, पर सब कुछ बेकार गया । लोगों ने सोचा, शायद इन्द्रदेव का प्रकोप है, अतः उनको प्रसन्न करने के लिए तत्काल होम किया गया । नदी की भी पूजा-आरती की गई, पर सब बेकार ! प्रति क्षण पानी बढ़ रहा था ।
गाँव में भगदड़ मच गई। कच्चे मकान धड़ाधड़ धराशायी हो रहे थे । लोगों की आंखों में आंसू आ गये थे । उनकी जन्म-भर की कमाई घरों में ही रह गई थी, पर आने वाली विपत्ति के क्षण की कल्पना करके आंसू सूखने लगे । जिधर भी सुरक्षा का आभास हुआ, दौड़-दौड़ कर एकत्र हो गये । मां कहीं थी तो उसका दूधमुहां बच्चा कहीं; पति कहीं था तो पत्नी कहीं ! किसी को किसी का पता नहीं चल रहा था । सारे परिवार छिन्न-भिन्न हो रहे थे । सारे लोग अपनी ही चिन्ता में घुल रहे थे । बाज़ार में पन्द्रह फुट पानी चढ़ आया था। कुछ मकान तो बिल्कुल पानी में डूब चुके थे । नदी का वेग अभी भी कम नहीं हुआ था । ऊषा काल के धुंधले से उजाले में लोगों ने देखा, चारों ओर लाशें - ही - लाशें तैर रही हैं । कहीं किसी मां की लाश मरे हुए बच्चे को अपनी छाती से चिपकाए बह रही है, कहीं कोई मृत सुन्दरी गहने-कपड़े पहने हुए बह रही है तो कहीं किसी आदमी की लाश धन का डिब्बा अपनी छाती से लगाये बह रही है । किसी का मृत शरीर नंग-धड़ंग बह रहा है। जानवरों की तो कोई गलती ही नहीं थी । बड़े-बड़े वृक्ष तिनके की भांति बहते जा
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