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________________ १०४ / नए मंदिर : नए पुजारी का तो कोई पार ही नहीं था। कुछ दिनों बाद वह रामेसर के साथ जाकर मेले में से एक अच्छी बैलों की जोड़ी खरीद लाया और उसे सेठजी के बाड़े में बाँध दिया। धीरे-धीरे समय निकलता गया। कानूनी खानापूति करना तो सेठजी जानते ही थे, बल्कि वे स्वयं गांव के सरपंच थे। कानून के सारे रास्ते तो उनके घर से होकर निकलते थे । अतः सेठजी को कोई परेशानी नहीं हुई। उन्होंने दो किश्तों के रुपये भी भर दिए । उनके मन में धोखा करने की कोई बात नहीं थी। वे तो केवल यही चहाते थे कि पन्द्रह सौ रुपयों में पांच सौ अनावर्तक है, वे तो अपने हो ही जाएंगे। शेष हजार रुपए भी सस्ते ब्याज पर मिल रहे हैं। और फिर उन्होंने यह भी सोचा कि पन्द्रह सौ के बैलों को खिला-पिला कर दो हजार में बेच देंगे तो पाँच सौ रुपए वे भी चित हो जायेगे । अतः वे भी बहुत प्रसन्न थे। पर विधि का विधान कुछ दूसरा ही था । अचानक कुछ दिनों के बाद सेठजी का. देहान्त हो गया। पीछे से किश्तें नहीं चुकाई गई । अतः सरकार की ओर से किशन के नाम किश्तें चुकाने का नोटिस आया । वह उसे देखकर दंग रह गया। भला सरकार से उसका क्या लेना देना ! सारी बात जान लेने पर वह नोटिस लेकर सेठजी के पुत्रों के पास गया। उन्होंने उत्तर दे दियाहमें इस बात का कोई पता नहीं। सेठजी ने हमें इस विषय में कुछ नहीं बताया ।'किशन उनके सामने रोया धोया। सारी बात विस्तार से बताई, पर सेठजी के बेटे टस से मस नहीं हुए। उन्होंने कहा -- नोटिस तुम्हारे नाम है तुम जानो और नोटिस जाने। हम इस मामले में कुछ नहीं कर सकते । तुम्हें कोई काम करना था तो लिखा-पढ़ी के हिसाब से करना था। हमारे यहाँ तुम्हारी कोई लिखा-पढ़ी नहीं है।' किशन निराश हो कर लौट आया। सोचा--जब सरकार के आदमी आएंगे तो भंडाफोड़ कर दूंगा । कुछ दिन यो ही बीत गये। सरकार का फिर नोटिस आया। उसने उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की । आखिर बैंक की ओर से कुर्की का आदेश हुआ । सरकार के आदमी पुलिस को लेकर उसके मकान पर आए । किशन तो उन्हें देख कर हक्का-बक्का रह गया। आखिर सारा भेद मालूम हुआ तो उसने कहा--'मैंने तो बैल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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