________________
गरीबी हटाओ / १०३
अच्छी-सी बैलों की जोड़ी चुन लेना । पशुओं का डाक्टर भी वहाँ तुम्हारे साथ होगा । वह जब बैलों को सर्टिफाई कर देगा, तो वहीं बैंक का आदमी पैसा चुका देगा । बैल मेरे यहाँ बाँध जाना । धीरे-धीरे किस्तों से पैसा चुका दूंगा । कभी तेरे दस्तखतों की आवश्यकता हुई तो अंगूठा करवा लूंगा ।'
किशन को इसमें कोई बुरी बात नहीं लगी । वह सोचने लगा-' - 'मुझे बैलों की जरूरत नहीं है । सेठजी को जरूरत है । इनको कोई फायदा होता है तो होने दो, अपना क्या लगता है।' एक बार उसके मन में संदेह भी उभरा 'कहीं सेठजी मेरे साथ चार सौ बीसी तो नहीं खेल रहे हैं ?' पर दूसरे ही क्षण उसने विचार किया 'सेठजी मुझसे कितने प्र ेम से बात कर रहे हैं। क्या वे मुझे धोखा देंगे ? और फिर उसका ध्यान अपने हाथ में कुलबुला रहे सौ रुपयों की ओर गया । सेठजी लाभ कमाते हैं तो कमाने दो आखिर मुझे भी तो ये सौ रुपये दे रहे हैं । अपना कौनसे काँटों में हाथ जा रहा है ।' और अन्त में उसने फार्म पर अंगूठे का निशान लगा दिया ।
सेठजी ने उसे पानी पिलाया । बीड़ी भी पिलाई। हर तरह से आरवस्त किया। कहा 'कभी जरूरत पड़े, तो मुझे भूलना मत । इसे अपना ही घर समझना । हम तो तुम्हीं लोगों से कमा कर खाते है । तुम्ही हमारे अन्नदाता हो । हां, इन सौ रुपये की बात किसी से कहना मत। यह मेरी ओर से भगवान के नाम पर गुप्तदान है । किसी को कह दिया, तो मेरा पुण्य नष्ट हो जाएगा ।'
किशन तो जैसे पानी-पानी हो गया । उसने चांदी के कड़े, सौ रुपये अपनी जेब में रख लिए और अपने घर लौट आया। घर में अब बड़ी खुशियां मनाई गयी । यार-दोस्तों ने किशन से पूछा - 'रुपए कहां से लाये ?' पर वह प्रश्न को विलकुल टाल गया । बोला- 'भगवान् की कृपा हो तो पैसे की क्या कमी रहती हैं । तुम्हारी भाभी ने जमा कर रखा
था ।
किसी ने कहा - ' औरत कितनी चतुर है कि चुपके-चुपके पैसे बचा लिए ।' किसी ने कहा - 'औरत कितनी बदमाश है कि छिपे-छिपे पैसा जमा कर लिया ।' पर सब प्रसाद पाकर मस्त हो गये । किशन की मस्ती
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org