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१०२ / नए मंदिर : नए पुजारी
मेरे जैसे कीड़े के लिए स्थान है, यही मेरे लिए काफी है।'
सेठ-'काफी होता, तो तुम ये गहने लेकर नहीं आते। इन्हें वापस ले जाओ । लो सौ रुपये । ठाठ से प्रसाद करना । भगवान् से जरा मेरे लिए भी दुआ मांगना।
किशन --- 'सेठजी ! यह नो आपकी कृपा है, पर गहने यहाँ पड़े रहें या वहाँ पड़े रहें, इसमें क्या फरक पड़ता है। कभी मेरी नियत बिगड़ जाए, चोरी हो जाए, और भी न जाने क्या हो जाए, इसलिए इन्हें आप अपने पास ही रखें । यहां ज्यादा सुरक्षित रहेंगे।'
सेठजी--'किशन, तू भोला है । मैंने तुझे कभी पराया नहीं समझा। ये रुपए कोई वापस थोड़े ही करने है ? हां, मेरा जरा एक काम कर देना
किशन-'क्या काम ? मैं यदि आपके कोई काम आ सक, तो बड़ी प्रसन्नता होगी।'
सेठजी-'हां, तुम कर सकते हो, इसीलिए तो कह रहा हूँ । आजकल सरकार कई प्रकार के ऋण दे रही है। ऋण सीमांत कृषकों को सस्ते ब्याज पर दिये जा रहे हैं। उसके अनुसार तीन बीघे से पांच बीघे वाले किसानों को आर्थिक सहायता मिलती है । तुम्हें बैलों की आवश्यकता हो तो बोलो?
किशन---'मैं बैलों की जोड़ी का क्या करूगा ?'
सेठजी - 'हां-तुम्हें आवश्यकता नहीं उसको पैसा दिया जा रहा है और जिसको पैसे की आवश्यकता है, वे बैठे ताक रहे हैं।' ___किशन --- सेठजी ! आपके ताकने की क्या बात है ? आपको तो भगवान् ने यो ही बहुत दे रखा है।'
सेठजी----'पर, 'रावला का तेल पल्ले में ही झेल' सरकार का ऋण व्यर्थ क्यों जाने दिया जाए ? और सरकार भी तो आखिर हमारी ही है। तब फिर उसके द्वारा बांटे जाने वाले पैसों से क्यों मुंह मोड़ा जाए ? तू ऐसा कर, यह फार्म मैं तेरे नाम भरे देता हूं। तू अपना अंगूठा लगा दे। इससे पन्द्रह सौ रुपये मिलेंगे । दस वर्षों में धीरे-धीरे किस्तों पर पैसा चुकाना ' पड़ेगा, सो मैं चुकाता रहूँगा। तुझे कुछ नहीं करना पड़ेगा। केवल बैल लाने के लिए मेले जाना पड़ेगा, तेरे साथ मैं रामेसर को भेज दूगा । दोनों
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