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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. २७ चन्द्र सूर्यादीनां ताराविमानोच्चत्वादिनि० ४५७ 'दसहि जोयणेहिं अबाहया चारं चरइ दशभि योजनैरित्येवं रूपया आधया सूर्यविमानं चारं चरति अत्र खलु सूत्रे समतल भूमिभागादृय नवत्यधिकसप्तयोजनातिक्रमेण ज्योतिश्चक्रबाहल्यमूलभूत आकाशप्रदेशप्रतरः स एवावधिमन्तव्यः, एवं चन्द्रादिसूत्रेऽपि ज्ञातव्यम्, 'एवं चंदविमाणे णउईए जोयणेहि चारं चरइ' एवं सूर्यसूत्रप्रदर्शितक्रमेण चन्द्रविमानं नवत्या योजनैरवाधया चारं चरति, 'उपरिल्ले तारारूवे दमुत्तरे जोयणसए चारं चरइ' एवम् उपरितनं तारारूपं देशोत्तरे-दशाधिक योजनशते ज्योतिश्चक्रबाहल्यमान्ते इत्यर्थः चारं चरति । सम्प्रति-सूर्यादीनां परस्परमन्तरं स्वयमेव सूत्रकारः प्राह-'मरविमाणाओ' इत्यादि, 'सूरविमाणाओ चंदविमाणे असीइए जोयणेहिं चारं चरह' सूर्यविमानात् चन्द्रविमानम् अशोत्या योजनैश्चारं चरति, आलापप्रकारस्तु इत्थम्-हे भदन्त ! सूर्यविमानात कियत्या अबाधया चन्द्रविमानं चारं चरति ? भगवानाह-हे गौतम ! सूर्यविमानात् चन्द्रविमानमयोजन की ऊंचाई पर जो ज्योतिश्चक्र का चार क्षेत्र प्रारंभ होता है सो वहां से कितनी योजन की ऊंचाई पर सूर्य विमान गति करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! दसहिं जोयणेहिं अबाया चारं चरई' हे गौतम ! वहाँ से ७९० योजन चार क्षेत्र से आगे १० योजन की ऊंचाई पर सूर्यविमान गति करते हैं। 'एवं चंदविमाणे णउईए जोयणेहिं चारं चरइ' इसी तरह समतल भूमिभाग से ९० योजन की ऊंचाई पर चन्द्रविमान गति करते हैं 'उवरिल्ले तारारूवे दसुत्तरे जोयणसए चारं चरई तथा-समतल भूमिभाग से ११० योजन की ऊंचाई पर तारारूप ज्योतिश्चक्र गति करते हैं। इस प्रकार 'सूरविमाणाओ चंद विमाणे असीईए जोयणेहिं चारं चरई' सूर्य विमान से चन्द्रविमान की दूरी ८० योजन की है और सूर्यविमान से इतनी दूर रहा हुआ चन्द्रविमान गति करता है । इस सम्बन्ध में आला प्रकार इस प्रकार से है-'सूरविमाणाओ णं भंते ! केवइयाए अबाहया चंदविमाणे चारं चरई ? गोयमा ! सूरविमाणाओ चंदविमाणे असीईए જે શિકતા ચાર ક્ષેત્ર પ્રારંભ થાય છે તો ત્યાંથી કેટલાં જનની ઊંચાઈ પર સૂર્ય विभान ति ४२छ ? माना viwi प्रभु ४४-'गोयमा ! दसहिं जोयणेहिं अबाहया चारं चरई' गीत! त्यांथा ७६० यारान यार क्षेत्रथी माण १० योगननी मा ५२ सू विमान मति ४३ छ. 'एवं चंदविमाणे णउईए चारं चरइ' मेवी शते समतल भूमिमाथी ८. योनी या ५२ यन्द्रविमान ति ४२ छे. 'उवरिल्ले तारारूपे दसुत्तरे जोयणसए चारं चरई' तय-समताभूभागथी ११० यासननी या ५२ ता२।३५ ज्योति गति ४२. २॥ प्रारे 'सूरविमाणाओ चंदविमाणे असीईए जोयणेहिं चारं चरइ' सूर्यવિમાનથી ચન્દ્રવિમાનનું (અંતર) ૮૦ યે જનની છે અને સૂર્યવિમાનથી આટલું દૂર રહેલ यन्द्रविमान गति ४२ छ । समयमा मासा५ ५४१२ मा प्रभार छ-'सुरविमाणाओ भंते ! केवइयाए अबाया चंदविमाणे चार चरई' 'गोयमा ! सूरबिमाणाओ पदविमाणे असीईए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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