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________________ ३५० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे णक्खत्ते कि संठिए पन्नत्ते' अभिजिन्नामक प्रथमं नक्षत्रं किं संस्थितम् कस्येव संस्थितं संस्थान माकारविशेषो यस्य तत् किं संस्थितं प्रज्ञप्तं कथितमिति नक्षत्राणां संस्थानविषयकः प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा ! इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'गोसीसावलिसंठिए पन्नत्ते' गोशीर्षावलि संस्थितं प्रज्ञप्तम् तत्र गवां शीर्ष गोशीर्ष तस्य गोशीर्षस्य आवलिः तदीयपुद्गलानां दीर्घरूपा श्रेणि स्तत्समसंस्थानमभिजिन्नक्षत्रं कथितमिति, अनेनैव प्रकारेण श्रवणप्रभृति नक्षत्राणामपि संस्थानानि ज्ञातव्यानि सर्वेषां संस्थानानां स्वरूपं दर्शयितुं मूल कारो लाघवार्थ गाथा मुदाहरति-'गाहा' इत्यादि गाथा-संस्थानप्रदर्शनपरा श्लोकः तद्यथा-'गोसीसावलिकाहार सउणी पुप्फोवयारवावीय' गोशीर्षावलिः कासारः शकुनिः पुष्पोपचारी बापी च, तत्रामिजिन्नक्षत्रस्य गोशीर्षावलिसदृशसंस्थानं श्रवणनक्षत्रस्य कासारसंस्थानम् तत्र कासारः सरः तडाग इत्यर्थः 'सउणि' शकुनि:-पक्षी तद्वत् संस्थानं धनिष्ठानक्षत्रस्य 'पुप्फो संस्थानद्वार 'एएसिणं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्साणं' अय गौतमस्वामीने प्रभु से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! इन २८ नक्षत्रों के बीच में जो 'अभिई णखत्ते कि संठिए पण्णत्ते' अभिजित् नामका नक्षत्र है उसका संस्थान कैसा कहा गया है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! गोसीसावलिसंठिए पन्नत्ते' हे गौतम! गायों के मस्तक की जो आवलि हैं-मस्तक के पुदलों की दीर्घरूप जो श्रेणि है-उस के जैसे संस्थानवाला अभिजित् नक्षत्र कहा गया है मूलकार अब संक्षेप से समस्त नक्षत्रों के संस्थानों को दिखाने के लिये-गाथा कहते हैं-'गोसीसावलिकाहार सउणी पुप्फोवयार वावी य' यह तो ऊपर प्रकट ही कह दिया गया है कि अभिजित् नक्षत्र का संस्थान गोशीर्षावलि के जैसा है श्रवण नक्षत्र का संस्थान कासारतडाग के संस्थान जैसा है धनिष्ठा नक्षत्र का संस्थान शकुनि-पक्षी के संस्थान जैसा है शतभिषा नक्षत्र का संस्थान पुष्पोपचार के संस्थान जैसा है पूर्व भाद्र. સંસ્થાન દ્વાર 'एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ता' के गौतमस्वामी प्रभुने मे ५७युमहन्त ! ॥ ५४यात्रीस नक्षत्रानी क्यमा रे अभिइणक्खत्ते कि संठिए पन्नत्ते मलित નામનું નક્ષત્ર છે તેનું સંસ્થાન–આકાર કેવું કહેવામાં આવ્યું છે? આના જવાબમાં પ્રભુ प्रभु 3 छ-गोयमा ! गोसीसावलिसंठिए पन्नत्ते' 3 गौतम! मायाना भरतनारे આવલિ છે. મસ્તક પુદ્ગલની દીર્ધરૂપ જે શ્રેણી છે-તેના જે આકાર અભિજિત નક્ષત્રને કહેવામાં આવ્યે છે, મૂળકાર હવે સંક્ષેપથી સમસ્ત નક્ષત્રના સંસ્થાને–આકારमतावान माथी -1 -'गोसीसावलिकाहार सउणी पुप्फोवयार वावीय' से તે ઉપર પ્રકટ કરી દેવામાં જ આવ્યું છે કે અભિજિત્ નક્ષત્રનું સંસ્થાન કાસાર-તળાવ જેવા આકારનું છે. ધનિષ્ઠા નક્ષત્રને આકાર શકની પક્ષી–જે છે. શતભિષફ નક્ષત્રનું Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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