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प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. २२ नक्षत्राणां गोत्रद्वारनिरूपणम् वयार' पुष्पोपचारः शतभिषा नक्षत्रस्य पुष्पोपचारसंस्थानम् 'वावीय' वापी च, तत्र पूर्वभाद्रपदा नक्षत्रस्यार्द्धवारी संस्थानम् तथोत्तरभाद्रपदा नक्षत्रस्यापि अर्द्धवापी संस्थानमेव एतदर्द्धद्वयवापी मीलनेन परिपूर्णा वापी भवति, एतस्मादेव कारणात् सूत्र वापीसंस्थान कथितम् अतः संस्थानानां न न्यूनता शङ्कनीयेति । 'णावा' नौः रेवतीनक्षत्रस्य नौ:-नौकावत् संस्थानं भवति 'आसक्खंधग' अश्वस्कन्धकः अश्विनी नक्षत्रस्य अश्वस्कन्धवत् संस्थान भवति, 'भग' भरणी नक्षत्रस्य भगसंस्थानं भवतीति 'खुरधरए' क्षुर धारा, कृत्तिकानक्षत्रस्य क्षुरधारावदेव संस्थानं भवति 'सगडुद्धी' शकटोद्धी रोहिणीनक्षत्रस्य शकटोद्धी संस्थानं भवति 'मिगसीसावलि' मृगशीर्षावलिः मृगशिरोनक्षत्रस्थ मृगशीर्ष संस्थानं भवति, 'रुहिरबिंदु' आ नक्षत्रस्य रुधिरविन्दुवत्-शोणितविन्दुवत् संस्थानं भवति 'तुल्ला' तुल्ला पुनर्वसु नक्षत्रस्य तुलावत् संस्थानं भवति; 'वद्धमाणग' वर्द्धमानकम् पुष्यनक्षत्रस्य सुप्रतिष्ठितवर्द्धमानक संस्थानं भवति 'पडागा' पताका, अश्लेषा नक्षत्रस्य पताकावत् संस्थानं भवति, 'पागारे' पद नक्षत्र का संस्थान अर्द्धवापि के संस्थान जैसा है उत्तर भाद्रपदा नक्षत्र का संस्थान भी अद्धवापि के संस्थान जैसा ही है 'णावा' रेवती नक्षत्र का संस्थान नौका के संस्थान जैसा है 'आसक्खंधग' अश्विनी नक्षत्र का संस्थान घोडे के कंधे के संस्थान जैसा है 'भग' भरणी नक्षत्र का संस्थान भग के संस्थान जैसा है 'खुरधरए' कृत्तिका नक्षत्र का संस्थान क्षुरा की धारा के संस्थान जैसा है 'सगडुद्दी' रोहीणी नक्षत्र का संस्थान गाडी धुरा के संस्थान जैसा है 'मिगसीसावलि' मृगशिरा नक्षत्र का संस्थान मृग के शीर्षका जैसा संस्थान होता है वैसा है 'रुहिरबिंदु' आर्द्रा नक्षत्र का संस्थान रुधिर की बिन्दु का जैसा संस्थान होता है वैसा है 'तुल्ल' पुनर्वसु नक्षत्र का संस्थान तुला-तराजू-का जैसा संस्थान होता है-वैसा है 'वद्धमाणग' पुष्यनक्षत्र का संस्थान सुप्रतिष्ठित वर्द्धमानका जैसा संस्थान होता है वैसा है 'पडागा' अश्लेषा नक्षत्र का संस्थान ध्वजाका जैसा संस्थान-आकार होता है वैसा है 'पागारे' मघानक्षत्र का संस्थान प्राकार સંસ્થાન પુષપચાર જેવું છે. પૂર્વભાદ્રપદ નક્ષત્રનો આકાર અર્ધવાવ જે છે. ઉત્તરमाद्रा नक्षत्रनो २४१२ पर सवार ४ छ. 'णावा' रेवती नक्षत्र २ (माति) नोव छ. 'आसक्खंधग' अश्विनी नक्षत्रन आ४२ डानी वा छे. 'भग' मी नक्षत्रनु संस्थान मा छे. 'खुरधरए' कृत्तिानक्षत्रनु संस्थान क्षुरानी था। २ छे. 'सगडद्धी' हिमानक्षत्र मा २ गाउानी परी । छे. 'मिगसीसावली' भृगशिरानक्षत्रनो २२ २णना मस्त । छे. 'रुहिरबिंदु' मानक्षत्रना २४२ રુધિરના બિન્દુ જેવું છે. “સુર પુનર્વસુ નક્ષત્રની આકૃતિ ત્રાજવાને જેવો આકાર હેય छ तेना रवी छ 'वद्धमाणग' पुष्य नक्षत्रनु संस्थान सुप्रतिष्ठित पद्धमाननीति आय छ तेनाय छे. 'पडागा' मलेषा नक्षत्र संस्थान नानुसयान
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