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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. २२ नक्षत्राणां देवताद्वारनिरूपणम् ननु यदा नक्षत्राणि स्वयमेव देवतारूपाणि तदा तत्र देवतान्तर स्वीकारे का युक्तिस्तदभावाच्च कथं नक्षत्रेषु देवतानामाधिपत्यमिति चेदत्रोच्यते-पूर्वभवोपार्जिततपस्तारतम्येन तपसः फलस्यापि तारतम्यदर्शनात् मनुष्यवत, देवेष्वपि सेव्यसेवकभावस्यापि प्रतिपादनाव, यदाह-'सकस्स देविंदस्स देवरणो सोमस्स महारण्णो इमे देवा आणा उववायवयणणिरेसे चिटुंति तं जहा-सोमकाइया सोमदेवकाइया विज्जुकुमारा विज्जुकुमारीओ अग्गिकुमारा अग्गिकुमारीओ वाउकुमारा वाउकुमारी श्री चंदा सूरा गहा णक्खत्ता तारारूवा जे आवण्णे तहप्पगारा सम्वे ते तब्भत्तिया तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमरस महारणो आणावयणणिदेसे चिट्ठति । अतः इसी अभिप्राय को लेकर यहां गौतमस्वामी ने इन नक्षत्रों के कौन कौन देवता है और प्रथम नक्षत्र का कौन देवता है यह जानने के लिये प्रश्न किया है। शंका-जब नक्षत्र स्वयं ही देवता रूप है तो फिर इन के देवतान्तर मानने में क्या युक्ति है ? यदि इस सम्बन्ध में कोई युक्ति नहीं है तो फिर नक्षत्रों में देवताओं का अधिष्ठान कैसे हो सकता है? उत्तर-पूर्वभव में उपार्जित तपकी तरतमता से तपके फल में भी तरतमता देखी जाती है मनुष्य की तरह देवों में भी सेव्य सेवक भावका प्रतिपादन तो शास्त्र में हुआ ही है जैसा कि 'सकस्स देविंदस्स देवरणो सोमस्स महारण्णो इमे देवा आणाउपवायवयान. इसे चिटुंति-तं जहा सोमकाइया, सोमदेवकाइया विज्जुकुमारा विज्जुकुमारी ओ अग्गिकुमारा अग्गिकुमारीओ वाउकुमारा चाउकुमारीओ चंदा सूरा गहाणक्खत्ता तारारूवा जे आवण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तम्भत्तिया तम्भारिया सकस्स देविंदस्स देवरणो सोमस्स महरणो आणावयणणिद्देसे चिटुंति' इस ગૌતમસ્વામીએ આ નક્ષત્રના કયા ક્યા દેવતા છે અને પ્રથમ નક્ષત્રના ક્યા દેવતા છે એ જાણવા માટે પ્રશ્ન કર્યો છે. શંકા-જ્યારે નક્ષત્ર જાતે જ દેવતા રૂપ છે તે પછી એમને દેવતાનતર માનવા પાછળ શું પ્રજન છે? જે આ સમ્બન્ધમાં કઈ પ્રજન નથી તે પછી નક્ષત્રમાં દેવતાઓનું અધિષ્ઠાન કઈ રીતે હોઈ શકે? ઉત્તર-પૂર્વભવમાં ઉપાર્જિત તપની તરતમતાથી તપના ફળમાં પણ તરતમતા જોવામાં આવે છે મનુષ્યની જેમ દેવામાં પણ સેગ્યસેવક ભાવનું પ્રતિપાદન તે શાસ્ત્રમાં થયું જ छ रेभ. 'सक्कस देविंदस्स देवरगो सोमस्स महारण्णो इमे देवा आणा उवायवयणा निदेसे चिटुंति-तं जहा सोमफाइया सोमदेवकाइया विज्जुकुमारा विज्जुकुमारीओ अग्गिकुमारा अग्गिकुमारीओ वाउकुमारा वाउकुमारीओ चंदासूरागहा णक्खत्ता तारारुया जे आवण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो आणावयण ળિયે જÉતિ’ આ શાસ્ત્રાન્તરના પ્રકરણમાં થયું છે. અતિસરળ હોવાથી અમે આ પ્રકરણની ज० ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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