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________________ २७६ अम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सपूर्वापरेण-पूर्वापरपर्यालोचनया पञ्चसाम्वत्सरिके युगे युगनामकसंवत्सरे चतुर्विंशत्यधिकमेकं पर्वशतं प्रज्ञप्तं भवति अर्थात् पञ्चसंवत्सरात्मकयुगनामकसंवत्सरे चतुर्विशत्यधिकमेकं पर्वशतं भवतीति । __सम्प्रति युगसंवत्सरस्योपसंहारमाह-'सेत्तं' इत्यादि, ‘सेत्तं जुगसंवत्सरे' सोऽयं पूर्वकथितो युगसंवत्सरो द्वितीय इति ॥ सम्प्रति-तृतीयप्रमाण संवत्सरं दर्शयितुमाह-'पमाण संवच्छ रेणं भंते !' इत्यादि, 'पपाणसंवच्छरेणं भंते ! कइविहे पन्नते' प्रमागसंवत्सरः खलु भदन्त ! कतिविध:-कति प्रकारकः प्रज्ञप्त:-कथित इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयना' त्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहे पण्णत्ते' पञ्चविधः प्रज्ञप्तः पश्चविधः पश्चप्रकारकः कथित इति 'तं जहा' तद्यथा-णक्खत्ते चंदे उउ आइच्चे अभिवद्धिए' नाक्षत्रं चान्द्रम् ऋतु:-ऋतु संवत्सरः आदित्यः अभिवद्धितः, तत्र नक्षत्रसंबन्धि इति नाक्षत्रम् चन्द्र सम्बन्धि चान्द्रम् अभिवर्द्धितः प्रागुक्तस्वरूपः ऋतवो वसन्ताधाः षड् लोकप्रसिद्धाः तद्व्यवहार हेतुः ऋतु संवत्सरः एतस्यैव सावनसंवत्सरः कर्म संवत्सरश्चेतिनाम भवति, आदित्यस्य सूर्यस्य गत्या हो जाती है । (एवामेव सपुव्वावरेणं पंच संबच्छरीए जुगे एगे चउवीसे पव्वसए पभत्ते' इस प्रकार से इस पांच संवत्सरात्मक युग में युगनामक संवत्सर मेंसब मिलाकर १२४ पर्व पक्ष होते हैं। 'सेत्तं जुगसंवत्सरे' इस प्रकारका यह युग संवत्सर के सम्बन्ध में विचार किया गया है 'पमाण संवच्छरे णं भंते ! कइविहे पाणत्ते' हे भदन्त! प्रमाण संवत्सर कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! पंचविहे पन्नते' हे गौतम ! प्रमाण संवत्सर पांच प्रकार का कहा गया है 'तं जहा' जैसे 'णक्खते चंदे उऊ आइच्चे, अभिवद्धिए' नक्षत्र प्रमाण संवत्सर चन्द्र प्रमाण संवत्सर, ऋतु प्रमाण संवत्सर आदित्य प्रमाण संवत्सर और अभिवति प्रमाण संवत्सर इनमें नक्षत्र सम्बन्धी संवत्सर नक्षत्र संवत्सर चन्द्रमा संबंधी संवत्सर चान्द्र संवत्सर षट्ऋतु के व्यवहार में कारणभूत संवत्सर ऋतु संव. संवच्छरीए जुगे एगे चवीसे पब्वसए पन्नत्ते' प्रमाणु २॥ ५in सत्स२।म युगभांयुश नाम संवत्सरमां-५॥ ५४२ १२४ ५ प होय छे. 'सेत्तं जुगसंवत्सरे' । પ્રકારને આ યુગ સંવત્સરના સંબંધમાં વિચાર કરવામાં આવેલ છે. ___'पमाणसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते' 3 त ! प्रमाण सरस२ ३८॥ ४ारने। मां मावा छ ? सेना ४॥समा प्रभु ४ छ-'गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते' गौतम! प्रभाए सवत्स२ पांय ४२ने। पामत मावेश छ. 'तं जहा' भई ‘णक्खत्ते चंदे उऊ आइच्चे, अभिवद्धिए' नक्षत्रप्रभार सव:स२ यन्द्रप्रमाण सपत्स२, अतुप्रमा सवत्सर, આદિત્ય પ્રમાણુ સંવત્સર અને અભિવદ્ધિતપ્રમાણુ સંવત્સર આમાં નક્ષત્ર સંબંધી સંવત્સર નાક્ષત્ર સંવત્સર, ચન્દ્રમા સંબંધી સંવત્સર, ચાન્દસંવત્સર, પડતુના વ્યવહારમાં Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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