SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. १६ सूर्यस्योदयास्तमननिरूपणम् सम्प्रति क्षेत्रपशवृत्या दिवसरात्र्यो विभागं न्यूनाधिकभावं च ज्ञातुं प्रश्नयन्नाह'जयाणं भंते' इत्यादि, 'जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्त पव्ययास पुरथिमेणं' यदा खलु भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य भेरुपर्वतस्य पूर्वेण पूर्वस्मिन् दिविभागे' अट्ठारसमुहुत्ताणंबरे दिवसे भवइ' अष्टादश मुहूर्तानन्तरो दिवसो भवति 'तयाणं पञ्चस्थिमेण वि' तदा खलु मन्दरस्थ पर्वतस्य पश्चिमेन-पश्चिमदिग्विभागेऽपि अष्टाद मुहूर्तानन्तरो दिवसो भवति 'जयाणं पच्चत्थिमेणं' यदा खलु जम्बूद्वीपे अन्दरस्य पर्वतस्य पश्चिषायां दिशि अष्टा दशमुहूर्त्तानन्तरो दिवसो भवति 'तयाण जंबुद्दीवे दीवे गदरस्स पायस' सदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य-मेरोः पर्वतस्य 'उत्तरदाहिजेणं साइरेगा दुवालसमुहुत्ता राई भवई' उत्तरदक्षिणेश उत्तरस्यां दक्षिणस्यां च दिशि सातिरेका द्वादशमुहूर्त माणा रात्रि भवति तदा द्वाभ्यां मुहूर्तकषष्टिभागाभ्यामधिका द्वादशमुहूर्तप्रमाणा रात्रि भवति यावता यावता भागेन राई भवह' हां, गौतम ! ऐसा ही होता है जब जंबुद्धीप नामके इस द्वीप मे मन्दर पर्वतके दक्षिण भाग में और उत्तर दिग्भाग मे कुछकम १८ मुहूर्त का दिवस होता है-तब जम्बूद्वीप नामके इस द्वीप में मन्दर पर्वत की पूर्व दिशा में कुछ अधिक १२ मुहूर्त की रात्रि होती है। "जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्यस्स पुरथिमेणं अट्ठारस मुहता. णंतरे दिवसे भवई' हे भदन्त ! जब जम्बूद्वीप नामके इस द्वीप में मन्दर पर्वतकी पूर्व दिशा में कुछ कम १८ मुहूर्त का दिवस होता है 'ताण पच्चस्थिमेणवि' तब मन्दर पर्वत की पश्चिम दिशा में भी कुछ कम १८ मुहर्त का दिवस होता है और जब मन्दर पर्वत की पश्चिम दिशामें कुछ कम १८ मुहूर्त का दिवस होता है 'तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंद्रस्त पचयस् । उत्तरदाहिणेणं साइरेगा दुषाल समुहत्ता राई भवई' तब इस जम्बूद्वीप नामके द्वीप में मन्दर पर्वत की उत्तर दिशा में और दक्षिण दिशा में कुछ अधिक १२ मुहर्त की रात्रि होती है क्यों कि जितने २ भाग से हीन दिवस होने लगता है उतने उतने भाग ગૌતમ ! આ પ્રમાણે જ થાય છે. જ્યારે જમ્બુદ્વીપ નામક આ દ્વીપમાં મંઢરપર્વતના દક્ષિણ ભાગમાં અને ઉત્તરદિભાગમાં કંઈક કમ ૧૮ મુહૂર્તને દિવસ થાય છે ત્યારે જંબુદ્વિપ નામક આ દ્વીપમાં મંદર પર્વતની પૂર્વ દિશામાં કંઇક અધિક ૧૨ મુહૂની રાત્રિ હોય છે. 'जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमेण अद्वारस रहुशाणंतरे दिवसे भवइ' 3 Asa ! न्यारे पूदी५ नामAn Elvi ४२५ ५६ मा ४४४ १८ भुताना स थाय छ 'तयाणं पच्चत्थिमेणं वि' त्यारे भ२५ तनी पश्चिमशामा ५ ४४ ४ १८ भुतना हिसाय छ. 'तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणेणं साइरेगा दुवालस मुहुन्ता राई भवई' सारे मामूदी नाम દ્વીપમાં મંદર પર્વતની ઉત્તરદિશામાં અને દક્ષિણ દિશામાં કંઈક અધિક ૧૨ મુહૂર્ત જેટલી Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy