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________________ २४४ जम्बूद्वीपप्रशतिसूत्रे रद्धे अद्वारसमुत्ताणंतरे दिवसे भवइ' यदा खल उत्तरार्द्ध-मन्दरदिग्भागे अष्टादशमुहूर्त्तानन्तरः- अष्टादशमुहूर्तात् चिनो दिवसो भवति, 'तयाणं जंबुद्दीवेदीवे मंदरस्स पव्त्रयस्स पुरस्थि देणं साइरेगा दुसत्ता राई भाइ' तदा खलु मन्दरस्य दक्षिणे उत्तरे यदाऽष्टादशमुहूर्त्तावन्तरी दिवसो भवति तस्मिन् काभ्रे खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दास्य पर्वतस्य पूर्वेण पूर्व विभागे सातिरेका-किञ्चिदधिका द्वादशमुहूर्ताद्वादशहूर्तप्रमाणा रात्र व किमिति काक्वा प्रश्नः, भगवानाह - 'हंत' इत्यादि, 'हंता गोयमा' हन्त, गौतम ! 'जयाणं जंबुद्दीवे दीवे जाव राई भाई' यदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे यावत् मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे भागे उत्तरे भागे चाष्टादशधुहूर्त्तानन्तरो दिवसो भवति तदा जम्बूद्वीपे मन्दरपर्वतस्य पूर्वस्यां दिशि सातिरेका द्वादशमुहूर्तप्रमाणा शनि भवतीति । मुहूर्तानन्तर दिवस होता है। तात्पर्य कहने का यह है कि सर्वाभ्यन्तर मंडल से अनन्तर मंडल में जब सूर्य पहुंचता है तब वहां पूरे १८ मुहूर्त का दिवस नहीं होता हैं किन्तु ६१ भागों मे से २ भाग कम १८ महूर्त का दिवस होना प्रारम्भ होजाता है इस तरह जब दक्षिण दिग्भोग में ऐसा होता है तब उत्तर दिग्भाग मे भी ऐसा ही दिवस होता है ऐसा दिवस ही अष्टादश मुहूर्तानन्तर दिवस कहा गया है । 'जयाणं उत्तरद्धे अट्ठारसमुहस्ताणंतरे दिवसे भव३' हे भदन्त ! जब उत्तर दिग्भाग में - मन्दर पर्वत की उन्नर दिशा में कुछकम १८ मुहूर्त्त का दिवस होता है 'तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं साइरेगा दुबालसमुहुत्ता राई भवद' तब इस जम्बूद्वीप नामके द्वीप में मन्दर पर्वत की पूर्व दिशा में ६१ भागों में से २ भाग अधिक १२ मुहूर्त की रात्रि होती है क्या ? इसके उत्तर में प्रभुने कहा है- 'हंता, गोयमा ! जवाणं जंबुद्दीवे दीवे जाव દિવસ અષ્ટાદશ મુહૂત' પછી હોવા બદલ અષ્ટાદશ મુહૂત કરતાં કઈક અલ્પપ્રમાણવાળા होवा महस गष्टादृश मुहूर्तानन्तर हेवामां आवे छे. 'तयाणं उत्तर वि अट्ठारस मुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ' त्यारै भन्दरपर्वतमा उत्तर लिगमा १८ मुहूर्तानंन्तर દિવસ હોય છે. તાપ કહેવાનું આ પ્રમાણે છે કે સર્વાભ્ય તરમ`ડળથી અન તરમડળમાં જ્યારે સૂર્ય પહાંચી જાય છે ત્યારે ત્યાં પૂરા ૧૮ મુહૂર્તના દિવા હોતા નથી પરંતુ ૬૧ ભાગામાંથી ૨ ભાગ કમ ૧૮ ચુહૂતના દિવસના પ્રારંભ થાય છે. આ પ્રમાણે જ્યારે દક્ષિણદિભાગમાં આ પ્રમાણે થાય છે ત્યારે ઉત્તરદિમાગમાં પણ એવા જ દિવસ થાય छे. सेवा द्विवसने अष्टादश मुहूर्तानन्तर हिवस हवामां आवे छे. 'जयाणं उत्तरद्धे अट्ठारस मुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ' हे महंत ! क्यारे उत्तरहिमागमा भन्दरपर्वतनी उत्तरहिंशामा १८ मुहूर्तन दिवस थाय छे. ' तयार्ण जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं साइरेगा दुवालसमुहुत्ता राई भवइ' त्यारे ४ अभ्यूद्वीप नाभा द्वीपभां भं४२પતની પૂર્વાદિશામા ૬૧ ભાગેામાંથી શુ ૨ ભાગ અધિક ૧૨ મુહૂર્તની રાત્રિ હોય છે ? सेनाभवाभां प्रभु डे छे - 'हंता, गोयमा ! जयाणं जंबुद्दीवे दीवे जाव राई भवई' हां, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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