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________________ १५६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे योजनानि 'तीसं च एगसद्विभाए जोयणस्स' त्रिंशच्चैकपष्टिभागान योजनस्प 'एगं च एगसद्विभागं सत्तहा छेत्ता' एक चैकषष्टि भागं सप्तधा-सप्तप्रकारेण छित्वा 'चत्तारि चुण्णिया भागे' चतुरश्चूर्णिकाभागान् 'चंदमंडलस्म अवाहाए अंतरे पन्नत्ते' चन्द्रमण्डलस्य चन्द्र - मण्डलस्याबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम्, अर्थात् पञ्चत्रिंशद् योजनानि त्रिंशच्चैकपष्टिभागान् योजनस्यैकं चैकषष्टिभाग सप्तशा विभिद्य चतुरश्चूर्णिका भागान्, एतावच्चन्द्रमण्डलस्य चन्द्रमण्डलस्याबाधया अन्तरं भवतीति तृतीयं मण्डलान्तरद्वारं समाप्तम् ।। ___ सम्प्रति-चतुर्थमण्डलायामादिमानद्वारमाह-'चंदमंडलेणं भंते !' इत्यादि, 'चंदमंडळे पणतीसं जोयणाई तीसंच एगसद्विभाए जोयणस्स' हे गौतम! ३५-३५ योजन का तथा एक योजन के ६१ भागों में से ३५ भाग प्रमाण अन्तर कहा गया है इस तरह ३५ योजन का अन्तर वाच्य हो जाता है इस में इतना और संशोधन करलेना चाहिये-'एगं च एगसहिभागं सत्सहा छेसा यत्सारि सुणिया भागे' ६१ भागों में से एक भाग के ७ दुकडे करना और उन में से ४ भाग लेना इस तरह इतना और अधिक अन्तर में प्रक्षिप्त कर देना-इस प्रकार से 'चंदमंडलस्स चंदमंडलस्स अचाहाए अंतरे पण्णसे' एक चन्द्रमंडल का दूसरे चन्द्रमंडल से अन्तर कथन स्पष्ट हो जाता है समुदितार्थ इसका ऐसा हो जाता है कि एक चन्द्रमंडल का दूसरे चन्द्र मंडल से ३५० योजन का और ६१ योजन भागों में से १ भाग के ७ भाग करने पर ४ भाग प्रमाण अन्तर है। तृतीयमण्डलान्तर द्वार कथन समाप्त. चतुर्थमंडल आयामादि द्वार कथन इसमें गौतमस्वामी ने प्रभु से ऐसा पूछा है 'चंदमंडलेणं भंते ! केवइयं च एगसद्विभाए जोयणस्स' गौतम ! ३५, ३५ योजना तथा ४ योजना ६१ ભાગમાંથી ૩૫ ભાગ પ્રમાણુ અંતર કહેવામાં આવેલ છે. આ પ્રમાણે ૩૫ જનનું भत२ पाच्य थ य छे. मामा मामी साधन ४२ मे, 'एग च एगसद्विभागं सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुणिया भागे' ११ मागोमांथी मे भागना ७६ કરડાએ કરવા અને તેમાંથી ૪ ભાગ લેવા. આ પ્રમાણે કે આટલું વધારે અંતરમાં प्रक्षिात ४३ हे. भाम 'चंदमंडलस्स चंदमंडलस्स अबाहाए अंतरे पण्णत्ते' । यद्रम. ળનું બીજા ચન્દ્રમંડળથી અંતર કથન સ્પષ્ટ થઈ જાય છે. આને સમુદિતાર્થ આ પ્રમાણે થઈ જાય છે કે એક ચંદ્રમંડળને બીજા ચંદ્રમંડળથી ૩૫૪ જનને અને ૬૧ જન ભાગોમાંથી ૧ ભાગના ૭ ભાગ કરવાથી ૪ ભાગ પ્રમાણ અંતર છે. તૃતીયમંડળાન્તરદ્વાર કથન સમાપ્ત ચતુર્થમંડળ આયામા દિદ્વાર કથન मामा गौतस्वामी प्रभुने म तना प्रश्न या छ -'चंदमंडले णं भंते ! केवयं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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