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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पञ्चभिरग्रमहिषीभिः सपरिवाराभिः 'तिहिं परिसाहि' त्रिभिः परिषद्भिः ‘सत्तहि अणि एहिं सत्तहिं अणिआहिवईहिं' सप्तभिरनीकैः सप्तभिरनीकाधिपतिभिः 'चउहि चउसहिहिं आयरक्खसाहस्सीहिं' चतसृभिः, चतुष्पष्टिः, आत्मरक्षकसौः 'अण्णेहि अन्यैश्च इत्यालापकांशेन सम्पूर्ण: आलापकस्त्वयं बोध्यः 'चमरचंचारायहाणीवत्थव्वेहिं बहू हिं असुरकुमारेहि देवेहिय देवीहिअत्ति जहा सक्के' यथा शक्रस्तथायमपि ज्ञातव्यः ‘णवरं' नवरम् अयं विशेषः 'इमं णाणत्तं' इदम् नानात्वम् भेदः 'दुमो पायताणो आहिवई' द्रुमः तन्नामकः पदात्यनीकाधिपतिः 'ओघस्सरा घंटा' ओघस्वरा तन्नाम्नी घण्टा 'विमाणं पण्णासंजोयणराहस्साई' विमानं यानविमानं पञ्चाशत् योजनसहस्राणि विस्तारायामम् महिंदज्झ मो पंचजोरणसयाई महेन्द्रध्वजः पञ्चयोजनशतानि उच्चः 'विमाणकारी आभियोगीओ देवो' विमानकारी विमाननिर्माता आभियोगिको देवो न पुनमानिकेन्द्राणां पालकादिरिव नियतनामकः 'अवसिटुं तंचेव जाव मंदरे समोसरइ पज्जुवासईत्ति' अवशिष्टं तदेव शक्राधिकारोक्तमेववाच्यम् नवरं दक्षिणपश्चिमो वाराहिं' अपने अपने परिवारसहित पांच अग्रमहिषियों से 'तिहिं परिसाहिं' तीन परिषदाओं से 'सत्तहिं अणिएहिं' सात अनीको सैन्यो से 'सत्तहिं अणी. आहिवहहिं च उहिं चउसठ्ठीहिं आयरक्खसाहस्सीहिं' सात अनीकाधिपतियों से चार चौसठ हजार आत्मरक्षा में '२५००० आत्मरक्षक देवों से' तथा 'चमरचंचा रायहाणीवत्थव्वेहिं बहूहिं असुरकुमारहिं देवेदिअ देवीहि य' चमरचंचा राज. धानी में रहे हुए अनेक असुरकुमार देवों एवं देवियों से युक्त हुआ बैठा था वह भी 'जहा सक्के सौधर्मेन्द्र की तरह 'जावमंदरे समोसरह' यावत् मन्दर पर्वत पर आया ऐसा यहां अन्वय लगालेना चाहिये 'शक के ठाटबाट में और इसके ठाटबाट में 'इमं णाणत्तं' यही भिन्नता है कि 'दुमो पायत्ताणीआहिवई ओघस्सरा घंटा, विमाणं पण्णासं जोयणसयसस्साई महिंदज्झओ पंचजोयणसयाई, विमाणकारी आभिओगिओ देवो अवसिह तं चेव जाव मंदरे समोसरई' इसकी पैदल चलनेवाली महिसीहि सपरिवाराहि पात-पोताना परिवार साथ पांय अयमलिपीमाथी तिहिं' परिसाहि' परिपहायोथी 'सत्तहि अणिएहि' सात मनी सैन्योथी 'सत्तहिं अणीआहिव इहिं चउसट्ठीहि आयरक्खसाहस्सीहि' सात अनधिपतिमाथी, या२ ६४ ७००२ माम२६थी (२५६००० मात्मरक्ष वाथी) तथा 'चमर चंचारायहाणी वत्यहि बहू हि असुरकुमारेहिं देवेहि अ देवीहिय' याभरय ॥ २४धानीमा २ङना। मने४ ससुमार हेवे। मन हेवामाथी युत मेहत ५५ 'जहा सक्के' सौधर्मेन्द्रनी म 'जाव मंदरे समोसरइ' यावत् मन्त२ पत ५२ माव्या. सवा सो मन्यय मे. सन 18-भाभां मने गाना 8-मामा 'इमं णाण' माटो तसत छ -'दुमो पायत्ताणी आहिवई ओघस्सरा घण्टा, विमाणं पग्णासं जोय गस यसहस्साई महिंदज्झओ पंचजोयणसयाई, विमाणकारी आभियोगिओ देवो अवसिटुं तं चेव जाव मंदरे समोसरइ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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