SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 676
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवनरकारः सू. ८ चमरेन्द्रभवनवासिनां निरूपणम् ६७७ रतिकरपर्वतः कियदृरमित्याह-यावन्मन्दरे समवसरति पर्युपास्ते इति । अथ बलीन्द्रः । तेणं कालेणं' इत्यादि "तेणं कालेणं तेणं समएणं बली असुरिंदे असुरराया एवमेव दस्मिन् काले तस्मिन् समये बलीरसुरेन्द्रोऽसुरराजः एवमेव चमर इव ‘णवरं सट्ठीसामाणिभ साहस्सीओ' नवरम् अयं विशेषः । षष्टिः सामानिकसहस्राणि पप्टिसहस्रसंख्याक सामानिका इत्यर्थः 'चउगुणा आयरक्खा' चतुर्गुणा आत्मरक्षकाः, समानिकसंख्यातश्चतुर्गणसंख्याका आत्मरक्षका इत्यर्थः । पद पञ्चाशत् सहस्राधिक द्विलक्षमिति यावत् 'महादुमो पायताणीआहिवई' महा द्रुमः तन्नामकः पदात्यनीकाधिपतिः 'महाओहस्स! घंटा' महौघस्वरा घण्टा व्याख्यातोऽधिकं प्रतिपाद्यते इति चमरचञ्चास्थाने लिचश्चा दाक्षिणात्यो निर्यागमार्गः, उत्तरपश्चिमे रतिकरपर्वतः इति । 'सेसं तं चेव' शेपं यानविमानविस्तारादिकं तदेव एतस्मिन्नेव सूत्रे पर्षदो सेनाका अधिपति-पदात्पनीकाधिपति देव द्रुप नासवाला था घंटा इसकी ओधस्वरा नालकी थी यान विमान इसका ५० हजार योजन का विस्तारवाला था इसकी महेन्द्र ध्वजा ५०० योजन ऊंची थी विमानकारी यह आभियोगिक देव था बाकी का और सब कथन जैसा शक के अधिकार में कहा गया है वैसा ही है इसका रतिकर पर्वत दक्षिण पश्चिम दिश्वर्ती होता है कि जहां पर आकर वह वहां से चलता है वहां मन्दर पर आकर इसने प्रभु की पर्युपासना की 'तेणं कालेणं तेणं सभएण' उस काल में जप कि प्रभुका जन्म हुआ और उस समय में जब कि ४५ दिवकुमारिकाएं आदर्श प्रदर्शनादिरूप कार्य कर चुकी 'बली असुरिंदे असुरराया एवमेव णबई सट्ठी सामाणी साहस्सीओ चउगुणा आयरक्खा महादुमो पायत्तागीआहिबई महामोहस्सरा घण्टा सेसं तंचेव' असुरेन्द्र असुरराज बली भी चमर की तरह मन्दर पर्वत पर आया और उसने भी प्रभु की पर्युपासना को 'णवरं' पद से यह अन्तर प्रकट किया गया है कि इसके આની પાયદળ ચાલનારી સેનાના અધિપતિ–પદાનીકાધિપતિ–મ નામ વાળે. હવે એની ઘંટાનું નામ એઘસ્વરા હતું. એનું યાન-વિમાન ૫૦ હજાર જન જેટલા વિસ્તારવાળું હતું આની મહેન્દ્રવજા ૫૦૦ યેજન જેટલી ઊંચી હતી. આ વિમાનકારી આભિયોગિક દેવ હ. શેષ બધું કથન જે પ્રમાણે શકના અધિકારમાં કહેવામાં આવ્યું છે, તેવું જ છે. આનો રતિકર પર્વત દક્ષિણ દિગ્ગત હોય છે કે જ્યાં આવીને તે ત્યાંથી ચાલે છે. त्यो भन्४२ ९५२ २ावीन तेणे प्रभुनी पयुपासना ४२१. 'तेणं कालेणं तेणं समएण' ते गे અને તે સમયે, જ્યારે પ્રભુનો જન્મ થયે અને જયારે પ૬ દિકુમારિકાઓ આદર્શ प्रशना ३५ यसपाहन ४॥ यू४ी त्यारे ‘बली असुरिंदे असुरराया एवमेव णवर सट्ठी सामाणीअ साहस्सीओ चउगुणा आयरक्खा महादुमो पायत्त,णीआहिवई महाओहस्सरा घंटा सेसं तं चे।' मसुरेन्द्र असुरमा२।४ मी पण यभरनी भ भाहर ५ ७५२ २004 मन ते ५५ प्रभुना पर्युपासना ४२N. 'णवर' ५४थी 20 त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy