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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे ज्झुंचनकं यस्य स तथाभूतः तथा उक्तहर्षातिशयादेव घोलद् दोलायमानं भूषणं धरति यः स तथाभूतः ततः पदद्वयस्थ कर्मधारयः मूठे प्रलम्बमानपदस्य पूर्वे प्रयोक्तव्ये परप्रयोगः आपत्वात् 'ससंभमं तुरिअं चवलं सुरिंदे सीहासणो अभुढेइ' तत्र ससंभ्रमं सादरम् त्वरितं मानसौत्सुक्यं यथास्यात् तथा चपलं कार्यो मुक्यं यथास्यात् तथा सुरेन्द्रः सिंहासनात् अभ्युत्तिष्ठति 'अब्भुटेत्ता' अभ्युत्थाय 'पायपीढाओ पच्चोरुद्दई' पादपीठात् पदासनात प्रत्यवरोहति अवतरति, 'पच्चोरुहित्ता' प्रत्यवरुहय अवतीर्य 'वेउव्वियवरिहरिट अंजणनिउ. णोविअमिसिमिसितमणिरयणमंडियाओ पाउआओ ओमु भई वैडूर्य वरिष्टरिष्टाजननिपुणोचितमिसमिसिन्तमणिरत्नमण्डिते पादुके अवमुञ्चति तत्र वैडूर्यारिष्टरिष्टाजननिपुणोचिते निपुणैः शिल्पिभिः वैडूर्यानि तत्तन्नामकरत्नविशेषेभ्यो निर्मिते तथा मिसिमिसित देदीप्यमानमणिचञ्चल हो उठा इसलिये कानों के झुम्बनकों में और कंठ के आभूषणों में संघट्टन होने लगा अथवा झुम्बनक नाम चोगे का भी है तथा च-इसने लंबा चोगा पहिन रक्खा था सो जिनेन्द्र का जन्म हुआ है ऐसा जब इसने जाना तब हर्षातिरेक के कारण शरीर में कंपन हुआ सो उसकी वजह से इसके भूषण चश्चल हो उठे वे पहिरे हुए चोगे से भी नहीं दबे यहां आर्ष होने से प्रलम्बमान जो कि प्रालम्ब का विशेषण है उसका पर प्रयोग हुआ है ऐसा वह 'सुरिंदे' शक (ससंभमं तुरियं चवलं सीहासणाओ अम्भुढेइ) बडे आदर के साथ उत्कंठित बनकर अपने सिंहासन से उठा (अब्भुटेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ) और उठ कर पादपीठ से होकर नीचे उतरा (पच्चोरुहित्ता वेरुलिअवरिट रिट्ठ अंजण निउणोविअमिसिमिसिंतमणिरयणमंडियाओ पाउयाओ ओमुअइ) नीचे उतर कर निपुणशिल्पियों द्वारा वैडूर्य वरिष्ठ रिष्ट, तथा अंजन नामक रस्न विशेषों की बनाई हुई एवं देदीप्यमान मणिरत्नों से मण्डित हुई ऐसी दोनों ગયું, એથી કાનના ઝુમખાઓમાં અને કંઠના આભૂષણોમાં સંઘટ્ટ થવા માંડ્યું અથવા ચેગાનું નામ પણ ઝુમ્બના છે. તે તેણે લાંબે એને પહેરી રાખ્યું હતું. જ્યારે તેણે જિનેન્દ્રને જન્મ થયો છે એવું જોયું ત્યારે હર્ષાતિરેકને લીધે તેના શરીરમાં કંપન થયું. તેનાથી એના આ ભૂષણે ચંચળ થયાં. તે આ ભૂષણે પહેરેલા ચોગાથી પણુ દળાયા નહિ. અહીં આ હેવાથી પ્રલંબમાન કે જે પ્રાલંબનું વિશેષણ છે, તેને मडी ५२प्रयोग था छ. मेव ते 'सुरिदे श 'ससंभमं तुरियं चवलं सीहासणाओ अब्भुदेई' म २।४२ सा2 GST न पोताना सिंहासन परथी असो थयो. 'अब्भुटेत्ता पायपीठाओ पच्चोरुहई' अने धने पा४ पी8 3५२ थक नीये तर्या. 'पच्चोरुहित्ता वेलिअ परिदरि? अंजणनि उणोविअमिसिमिसितमणिरयणमंडियाओ पाउया
ओ ओमुअइ' नी तीन नि शिEि५। ५३ पैडूय १६७७ (२८ तथा मन નામક રત્ન વિશેષથી નિર્મિત અને દેદીપ્યમાન મણિરત્નથી મંડિત થયેલી એવી બને
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