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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू. ४४ रम्यकवर्षनिरूपणम् 'इलादेवीकूडे' इलादेवीकूटम्-इलादेवी दिक्कुमारीकूटम् ९. 'एरवयकूडे' ऐरवतकूटम्ऐरावतवर्षाधिपकूटम् १०, 'तिगिच्छिकूडे' तिगिच्छि हददेवकूटम् ११ एवं' एवम्-अनन्तरोक्तानि 'सव्वेवि' सर्वाण्यपि 'कूडा' कूटानि 'पंचसइया' पञ्चशतिकानि पञ्चशतयोजनप्रमाणानि बोध्यानि एषां 'रायहाणीओ' राजधान्यः 'उत्तरेणं' उत्तरेण उत्तरदिशि बोध्याः, अथास्य नामार्थ प्रष्टुमाह-'से केणटेणं मंते !' इत्यादि अथ शिखरिस्वरूपनिरूपणानन्तरं केन अर्थेन कारणेन भदन्त ! 'एवमुच्चइ' एवमुच्यते 'सिहरिवासहरपब्बर २ ' शिखरिवर्षधरपर्वतः २१, इति प्रश्नस्य भगवानुत्तरमाह-'गोयमा !' गौतम ! 'सिहरिमिम' शिखरिणि 'वासहरपव्वए' वर्षधरपर्वते सिद्धायतनाधतिरिक्तानि 'बहवे' बहूनि 'कूडा' कूटानि 'सिहरिसंठाणसंठिया' शिखरिसंस्थानसंस्थितानि-वृक्षाकारसंस्थितानि 'सव्वरयणामया' सर्वरत्नमसुवर्णकूलाकूट ४, सुरादेवीकूट, ५, रक्ताकूट ६, लक्ष्मीकूट ७, रक्तवतीकूट ८, इलादेवीकूट ९, ऐरवतकूट १०, और तिगिच्छिकूट ११ इनमें सिद्धायतनकूट इस पर्वत की पूर्व दिशा में है। शिखरी वर्षधरपर्वत के नाम से प्रसिद्ध द्वितीयकट है हैरण्यवत क्षेत्र के देवका तृतीय कूट है सुवर्णकूला नदी की देवी का चतुर्थ कूट है सुरादेवी नामकी दिक्कुमारी का पांचवां कूट है रक्तावर्तन कूटका नाम रक्ताकूट है यह छठा कूट है पुण्डरीक हूद की देवी का ७ वां कूट है रक्तवती नदी का जो परावर्तन कूट है वह ८ वां कूट है इला देवी नामकी दिक्कुमारी का ९ वां कूट है ऐरावत क्षेत्र के अधिपति देवका १० वां कूट है तथा तिगिच्छि हद देवका ११ वां कुट है 'सव्वे वि एए पंचसइया, रायहाणीओ उत्तरेणं' ये सब कूट ५०० ५०० योजन प्रमाण वालेहैं इनके देवों की राजधानियां अपने अपने कूटों की उत्तरदिशा में हैं ‘से के गढे णं भंते ! एवं बुच्चई सिहरिवासहरपन्चए' हे भदन्त ! इसका शिखरी वर्षधर पर्वत ऐसा नाम क्यों पडा ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं ८ ४, सुगवी ८ ५, २४ताहेकी छूट १, सभी ट ७, २४त.ती फूट ८, साहेवी ८-०, અરવત કૂટ–૧૦ અને તિગિચ્છ ફૂટ એમાં જે સિદ્ધાયતન કૂટ કહેવામાં આવેલ છે તે આ પર્વતની પૂર્વ દિશામાં આવે છે. શિખરી વર્ષધર પર્વતના નામથી પ્રસિદ્ધ દ્વિતીય કટ છે. હૈદણ્યવત ક્ષેત્રના દેવને તૃતીય ફૂટ છે. સુવર્ણ કૂલા નદીની દેવીને ચતુર્થ ફૂટ છે. સુરા દેવી નામક દિકુમારીનો પંચમ ફૂટ છે. રક્તવર્તન ફૂટનું નામ રક્તા કૂટ છે. આ ષષ્ઠ ફૂટ છે. પુંડરીક હદની દેવીને સક્ષમ કૂટ છે. રક્તવતી નદીને જે પરાવર્તન કૂટ છે, તે અષ્ટમ કૂટ છે ઈલાદેવી નામની દિકુમારીને નવમ કૂટ છે. એરવત ક્ષેત્રના અધિપતિ वनी शभ एट छ तथा ति२७ ३४ हेवनी जियारम। छूट छ. 'सव्वे वि एए पंच. सइया रायहाणीओ उत्तरेणं' मे मा छूटी ५००, ५०० योन प्रमाणवाणा छे. समना हेवानी ॥धानीपोत--ताना छूटानी उत्तर दिशामां आवेदी छे. 'से केणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ सिहरिवासहरपब्वए' मत ! से शिमरी व २ पति से नाम ॥ १२४थी ५७यु छ ? सेना Nanwi प्रभु ४ छ-गोयमा! सिहरिम्मि वासहरपव्वए कूडा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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