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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू. ४४ रम्यकवर्ष निरूपणम् दर्शनमनोहारितया प्रकटी करोति जनेभ्य इति शेषः, अयं भावः तत्र युग्मकमनुष्याणामासनशयनादि लक्षणोपभोगार्था बहवो हिरण्यमयाः शिलापट्टाः सन्ति तांश्च तत्रत्या मानवा आसनादिरूपतयोपभुञ्जन्ते ततश्च हिरण्यं प्रशस्तं नित्यं प्रचुरं वाऽस्यास्तीति हिरण्यवत तदेव हैरण्यवतं स्वार्थिकाण प्रत्ययान्तमिदम् इति । नामकारणान्तरमाह-'हेरण्णवए य इत्थ देवे' हैरण्यवतश्चात्र देवः 'परिवसई' परिवसति स च देव महद्धिको यावत् पल्योपमस्थितिकः, एतद्विवरणं प्राग्वबोध्यम् तेन हैरण्यवत देव स्वामिकवादिदं हैरण्य रतमित्युच्यते, अध षष्टं वर्षधरपर्वतं वर्णयितुमुपक्रमते-'कहिणं भंते !' इत्यादि-वव खलु भदन्त ! 'जंबुद्दीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'सिहरीणामं शिखरीनाम 'वासहरपव्वए' वर्षधरपर्वतः पण्णत्ते' प्रज्ञतः १, इति प्रश्नन्य भगवानुत्तरमाह-'गोयमा !' गौतम ! 'हेरण्णवयस्स' हैरण्यक्तस्य वर्षस्य 'उत्तरेणं' कहा जाता है क्योंकि यह रूप्यमय और स्वर्णमय रूक्मी एवं शिखरी पर्वतों से सम्बन्धित है अतः इनके योग से इसका नाम हैमवत ऐसा हो गया है। अथवा-यह नित्य सुवर्ण को देता है नित्य स्वर्ण को छोडता है नित्य स्वर्ण को प्रकाशित करता है तात्पर्य इसका ऐसा है कि वहां पर अनेक स्वर्णमय शिला पटक है अतः वहां के युग्मक मनुष्य आसन शयन आदिरूप उपभोग के निमित्त इनका उपयोग करते रहते हैं इससे ऐसा कहा जाता है कि यह क्षेत्र नित्य स्वर्ण प्रदानादि करता है हैरण्यत में स्वार्थिक अणू प्रत्यय हुआ है तथा यहां पर हैरण्यवत् नामका देव रहता है यह देव महद्धिक यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाला है इस कारण से भी इसका नाम हैरण्यवत क्षेत्र ऐसा कहा गया है। 'कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे सिहरीणामं वासहरपन्चए पण्णत्ते' हे भदन्त ! इस जम्बूद्वीप नामके द्वीप में शिखरी नामका वर्षधर पर्वत कहां पर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! हेरण्णवयस्स उत्तઆ રુખ્યમય અને સ્વર્ણમય રુફમી અને શિખરી પર્વતથી સંબંધિત છે. એટલા માટે એમના ગથી એનું નામ હૈમવત એવું પ્રસિદ્ધ થયું છે. અથવા આ પર્વત નિત્ય સુવર્ણ આપે છે, નિત્ય સુવર્ણ બહાર કાઢે છે, નિત્ય સુવર્ણને પ્રકાશિત કરે છે તાત્પર્ય આમ છે કે આ પર્વત ઉપર અનેક સ્વર્ણમય શિલા પટ્ટકો છે, એથી ત્યાંના યુગ્મક મનુષ્ય આસન શયન આદિ રૂપ ઉપગ માટે એમને ઉપયોગ કરે છે. એથી આમ કહેવાય છે કે આ ક્ષેત્ર નિત્ય સુવર્ણ પ્રદાનાદિ કરે છે. હૈરણ્યવતમાં સ્વાર્થિક અણુ પ્રત્યય થયેલ છે. તેમજ અહીં હૈરણ્યવત નામક દેવ રહે છે. આ દેવ મહદ્ધિક યાવત્ એક પળેપમ જેટલી સ્થિતિવાળે छ. मेथी पY भानु नाम २९यक्त क्षेत्र मे उपाभा भाव छ. 'कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे सिहरी णामं वासहरपञ्चए पण्णत्ते' 3 मईत! 240 दी५ नाम द्वीपमा શિખરી નામક વર્ષધર પર્વત કયા સ્થળે આવે છે? એના જવાબમાં પ્રભુ કહે છે– 'गोयमा! हेरण्णवयस्स उत्तरेणं एरावयरस दाहिणेणं पुरथिमलवणसमुदस्स पण्चत्थिमेणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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