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________________ ४४ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे सुभगानि कमलविशेषाः सौगन्धिानिहाराणि श्वेतवर्णानि सुगन्धीनि कमलानि, पुण्डरीकाणि-श्वेत कमलानि, तान्येव महान्ति-महापुण्डरीकाणि, शतपत्राणि-शतविशिष्टानि कमलानि, सहस्रपत्राणि-पत्रसहस्रयुक्तानि कमलानि, शतसहस्रपाणि -लक्षपत्रयुक्तानि कमलानि तेषां केसरैः किंजल्कैः उपशोभितम् । यद्वा-वहनि-प्रचुराणि प्रफुल्लानि विकस्वराणि केसरोपशोभितानि च उत्पलादीनि यत्र तत्तथा । अत्र प्रथम विग्रह प्रफुल्लसदस्य, द्वितीय विग्रहे प्रफुल्लकेसरोपशोभितपदस्य च परप्रयोग आर्षत्वात् 'छप्पयमहुयरपरिभुञ्जमाणकमले' षट्पदमधुकर परिसुज्यमानरूमलं पट्पदा ये मधुरराः भ्रमाः तैः परिभुज्यमानानि कमलानि उपलक्षणतया कुमुदादीनि च यत्र तत्तथा 'अच्छविमलपत्थसलिले' अच्छविमलपथ्यसलिलम् तत्र-अच्छविमलम् अत्यन्त विमलं पथ्यं हितं सलिलं जलं यत्र तत्तथा 'पुण्णे' पूर्ण जलै र्भतम् 'पडिहत्थ भमंतमच्छकच्छ म अणेग सउणगणनहुणवियरिब सदुइयमदुरसरणाइए' प्रतिहस्त भ्रमन्मत्स्यकच्छपानेक शकुनगण मिथुन प्रवि चरितशब्दोनतिमधुरस्वरनादितम् तत्र प्रति. हस्ताः अतिप्रभूताः अत्यधिकाः भ्रमन्तः इतस्ततश्चलन्तश्च ये मत्स्याः कच्छवाश्च, तथा अनेक शकुनगणमिथुनानि अनेकजातीय पक्षिगणानां स्त्री पुंसयुगलानि तैः प्रविचरिताः कृता ये सूर्य विकाशी कमलों का नाम पम है औरवों का नाम कुमुद है ये भी चन्द्रविकाशी ही होते हैं-पर इनमें रेवत, रक्त आदि वर्ग की अपेक्षा भेद होता है नलिन और सुभग ये भी कमलविशेष है श्वेतवर्णवाले सुगंधित कमलों का नाम सौगंधिक कमल कहा गया है केवल वर्ग में जो श्वेत होते हैं वे पुण्डरीक हैं इनकी अपेक्षा जो बडे होते हैं वे महा पुण्डरीक है (छमयमयरपरिभुजमाण कमले) इसके कमलों पर भ्रमर बैठकर उनकी किंजल्क का पान किया करते हैं (अच्छविमलपसत्यसलिले) इसका जल आकाश और स्कटिक के जैसा अत्यन्त निर्मल है तथा पथ्य हितकारक है (पुण्णे, पडिहत्यममंतमच्छकच्छभ अणेग सउणगणमिहुणपविअरिय सदुन्नइयमहरसरणाइए पासाईए) यह सदा जल से परिपूर्ण रहता है इसमें इधर उधर अनेक मच्छ कच्छप फिरते સૂર્ય વિકશી કમળાનું નામ પદ્ય છે. કેરનું નામ કુમુદ છે. એ પણ ચન્દ્ર વિકાશી જ હોય છે, પરંતુ એમાં વેત રક્ત આદિ વર્ણની અપેક્ષાએ ભેદ હોય છે. નલિન અને સુભગ એ પણ કમળ વિશેષ છે. - વર્ણવાળા સુગંધિત કમળને રોૌગધિક કમળ કહે વામાં આવે છે. કેવળ વર્ણમાં જે વેત હોય છે તે પુંડરીક છે. એમના કરતાં જે મોટા डाय छ त महापुरी छ. छापयमहुयरपरिभुज्जमाणकमले' मेना भणे ५२ प्रभ। मेसीन तमना Sexनु न ४२॥ २९ छ. 'अच्छ-विमलपसत्थसलिले' मेनु 7 मा२॥ सन २३८४नी म सत्यत नि छ. तम ५थ्य४।२४ छे. 'पुण्णे, पडिहत्थ भमंत मच्छ कच्छभ अणेग सउणगण मिहुण पविअरिय सदुन्नइय महुरसरणाइए पासाईए' से सह। यी परिपू २ छ. मे माम-तम मने भ२७ ४२७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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