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________________ जम्बूदीपप्राप्तिसूत्रे 'बाहल्लेणं' बाहल्येन उच्चत्वेन 'पपगत्ते' प्रज्ञतम्, एतेन भद्रशालयनं नन्दनवनं सौमनसवनमन्तरद्वयं चैतानि सर्वाणि मन्दरपर्वतस्य मध्यमकाण्डेऽन्तर्भवन्ति, ननु द्वितीयकाण्डविभागस्य समवायाङ्गसूत्रस्याष्टत्रिंशत्तमसमवायेऽष्टत्रिंशत्सहस्रयोजनोच्छ्रितत्वेन वर्णितत्वात्रिषष्टियोजनसहस्रोच्चत्वं कथं सगच्छते ? इति चेत्, अत्रोच्यते-समवायाङ्गोक्तोच्चत्वस्य मतान्तरावलमनमूलकत्वात्प्रकृतोच्चत्वे न बाधक तेति । एवम् ‘उवरिल्ले पुच्छा' उपरितले काण्डे पृच्छा प्रश्नपद्धतिरूहनीया, तत्प्रश्नोत्तरमाह-'गोयमा ! गौतम ! 'छत्तीसं' पदत्रिशतं 'जोयणसहस्साई' योजनसह त्राणि 'वाहल्लेणं' वाहल्येन 'पण्णते' प्रज्ञप्तम् 'एवा मेव' एवमेव-पूर्वोक्तः रीत्यैव 'सपुवावरेणं' सपूर्वापरेण-पूर्वसंरुपानसहितापरसंख्यानेन सङ्कलितेन समा ‘मंदरे' मन्दरः 'पव्वए' पर्वतः 'एगं' एकं 'जोयणसयसहस्त' योजनशतसहस्रं 'समगेग' सर्वाग्रेण प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! तेवढि जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते' हे गौतम ! मध्यम काण्ड की ऊंचाई ६३ हजार योजन की कही गई है इस कथन से 'भद्रशालवन नन्दनबन, सौमनसवन और दो अन्तर ये सब मन्दर पर्वत के मध्यम काण्ड में अन्तर्भूत है' यह बात समझनी चाहिये। _ शंका-समवायाङ्ग सूत्र के ३८ वें समवाय में इस द्वितीय काण्ड रूपविभाग को ३८ हजार योजन की ऊंचाई वाला कहा गया है फिर आपका यह ६३ हजार की ऊंचाई वाला कथन कैसे संगत हो सकता है ? तो इसका उत्तर ऐसा है कि वहां जो ऐसा कहा गया है वह मतान्तर की अपेक्षा से कहा गया है अतः वह कथन इस कथन का बाधक नहीं हो सकता 'उरिल्ले पुच्छा' हे भदन्त उपरितन काण्ड की ऊंचाई कितनी कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते है-'गोयमा ! छत्तीसं जोयणसहस्साई बाहरणं पण्ण' हे गौतम ! उपरितनकाण्ड की ऊंचाई ३६ हजार योजन की कही गई है 'एवमेव सव्वावरेणं मंदरे पवर तेवर्षि जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते' हे गौतम ! मध्यम ४isी अया53 m२ જન જેટલી કહેવામાં આવેલી છે. આ કથનથી ભદ્રશાલવન, નંદનવન, સૌમનસવન, અને બે અન્તર એ બધા મન્દર પર્વતના મકાંડમાં અન્તસ્ત થઈ જાય છે. શંકા-સમવાયાંગ સૂત્રના ૩૮મા સમવાયમાં એ દ્વિતીય કાંડ રૂપ વિભાગને ૩૮ હજાર જન જેટલી ઊંચાઈવાળે કહેવામાં આવે છે, તો પછી અહીં ૬૩ હજાર જેટલી ઊંચ ઈનું કફન કેવી રીતે ચોગ્ય કહેવાશે? આને જવાબ આ પ્રમાણે છે કે ત્યાં જે આ પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે, તે મતાન્તરની અપેક્ષાએ કહેવામાં આવેલું છે. એથી ते ४थन २0 ४पनk मा नयी ‘उवरिल्ले पुच्छा' त ! परितन ४नी याs टत्री वामां माथी छ ? सेना यामां प्रभु ४ छ-'गोयमा ! छत्तीस जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते' गौतम ! परितन isी या 36 M२ योन सी ४३वामा मावेशी छे. 'एवामेव सपुवावरेणं मंदरे पञ्चए एगं जोयणसरसहस्सं सव्वग्गेणं पण्णत्ते' २१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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