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________________ जम्बूद्वीपप्रशप्तिसूत्र पुष्करिणी बहुमध्यदेशभागवर्ती 'पासायवडिंसओ' प्रासादावतंसकः 'सकस' शक्रस्यशक्रेन्द्रस्य शक्रेन्द्राधिष्ठितोऽयमितिभावः, तत्प्रासादावतंसकवर्ति 'सीमासणं' सिंहासन 'सपरिवारं' सपरिवारं-भद्रासनादि परिवारसहितं पूर्ववदेवात्रापि वक्तव्यम्, तथा 'उत्तरपञ्च. त्थिमेणं' उत्तरपश्चिमेन वायव्यकोणे 'पुक्खरिणीओ' पुष्करिण्यः सिरिकता' श्रीकान्ता १ 'सिरिचंदा' श्रीचन्द्रा २ 'सिरिमहिया' श्रीमहिता ३ 'चेव' चैव 'सिरिणिलया' श्रीनिलया ४ एतत्पुष्करिणी बहुमध्यदेश भागवर्ती 'पासायडिंसओ' प्रासादावतंसकः 'ईसाणस्स' ईशानस्य-ईशानेन्द्रस्य तत्प्रासादमध्यवर्ति 'सीहासणं' सिंहासनं 'सारिवारं' सपरिवारंभद्रासनादि परिवारसहितं वक्तव्यमिति । अधुनाऽस्मिन्नेव भद्रशालवने दिग्वस्तिकूटानि वर्णयितुमुपक्रमते-'मंदरे णं' इत्यादि-मन्दरे-मेरो खलु 'भंते !' भदन्त ! 'पन्नए' पर्वते 'भद्दसालवणे' भद्रशालवने 'कई' कति कियन्ति 'दिसाहथिकूडा' दिगृहस्तिकूटानि 'पण्णता ?' भी चार पुष्करिणियां है उनके नाम इस प्रकार से हैं-भृङ्गा, भृङ्गनिभा, अंजना और अञ्जनप्रभा इन पुष्करिणियों के ठीक मध्यभाग में प्रासादावतंसक है यह प्रासादावतंसक भी शक्रेन्द्र से अधिष्ठित है इस प्रासादावतंसक का मध्यवता सिंहासन भी पूर्व की तरह अपने परिवारभूत अन्य सिंहासनों से परिवेष्टित है (उत्तरपुरथिमेणं पुक्खरिणिओ) इसी प्रकार वायव्यकोण में भी पुक्खरिणियां हैं उनके नाम (सिरिकता, सिरिचंदा, सिरीमहिया चेव सिरिणिलया) श्री कान्ता, श्रीचन्द्रा, श्री महिता, और श्री निलया है (पासायडिंसओ ईसाणस्स सीहासणं सपरिवारं) इनके मध्यभाग में भी प्रासादावतंसक कहे गये हैं यह प्रासा दावतंसक ईशानेन्द्रका है इस प्रासादावतंसक का मध्यवर्ती सिंहासन भीअपनेअपने परिवारभूत सिंहासनों के साथ वर्णित करलेना चाहिये (मंदरेणंभंते !पव्वए भहसालवणे कइ दिसाहत्थिकूडा पण्णत्ता हे भदन्त ! इस मन्दरपर्वतवर्ती अंजणप्पभा पासायवडिंसओ सक्कस्स सीहासणं सपरिवार' मा प्रभारी नेत्य मां पर यार ५४रिणीय छे. तेमना नाभी प्रमाणे छ-न-१, मनिला-२, 24113, અને અંજનપ્રભા ૪. આ પુષ્કરિણીઓના ઠીક મધ્યભાગમાં પ્રાસાદાવંતસક છે. આ પ્રાસા- દાવંતસક પણ શકેન્દ્ર વડે અધિષ્ઠિત છે. આ પ્રાસાદાવતંસકનું મધ્યવતી સિંહાસન પણ पलानी म पाताना परिवार भूत अन्य सिंहासनाथी परिवटित छ. 'उत्तरपुरस्थिमेणं पुक्खरिणिओ' मा प्रमाणे वायव्य शुभा ५९य पुरिणीय छे. तमना नाभ। मा प्रभारी छ-'सिरिकता, सिरिचंदा, सिरिमहिया चेव सिरिणिलया' श्री हन्ता, श्री यन्द्री, श्री भडिता भने श्री निसया. 'पासायव डिसओ ईसाणस्स सीहसणं सपरिवारं' अमना मध्य ભાગમાં પણ પ્રાસાદાવતંસક આવેલા છે. એ પ્રસાદાવંતસક ઈશાનેન્દ્ર છે. આ પ્રાસા દાવતસકનું મધ્યવર્તી સિંહાસન પણ પિત–પિતાના પરિવાર ભૂત સિંહાસની સાથે વર્ણિતા श से नये. 'मंदरेणं भंते ! पव्वए भहसालवणे कइ दिसाहत्थि कूडा पण्णत्ता' महन्त ! ખા બંદર પર્વતવતી ભદ્રશાલ વનમાં કેટલા દિહરિત કૂટો આવેલા છે ? અ ફૂટે ઈશાન Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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