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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू. ३६ मेरुपर्वतस्य वर्णनम् पणनम् ४३९ चत्वारि 'जोयणाई' योजनानि 'बाहल्लेणं' बाहल्येन-पिण्डेन 'सबरयणामई' सर्वरत्नमयी सर्वात्मना रत्नमयी 'अच्छा' अच्छा, इदमुपलक्षणं, तेन श्लक्ष्णादि परिग्रहः पूर्ववत् । 'तीसे णं' तस्याः खलु 'मणिपेढियाए' मणिपीठिकायाः 'उवरि' उपरि 'देवच्छंदए' देवच्छन्दकः देवोपवेशनार्थमासनम्, स च 'अट्ठ जोयणाई' अष्ट योजनानि 'आयामविक्खंभेणं' आयामविष्कम्भेण 'साइरेगाई' सातिरेकाणि-किञ्चिदधिकानि 'अट्ट जोयणाई' अष्ट योजनानि 'उद्धं उच्चत्तेणं' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन 'जाव जिणपडिमावण्णओ' यावज्जिनप्रतिमावर्णकः अत्र यावत्पदेन-'इत्थ अट्ठसए जिणपडिमाणं पण्णत्ते, तासि णं जिणपडिमाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते' इत्यादिरूपो जिनप्रतिमानां-यक्षप्रतिमानां वर्णको ग्राह्यः, तथा 'देवच्छंदगस्त' देवच्छन्दकस्य देवासनविशेषस्य 'सव्वरयणामये' इत्यादिरूपो वर्णको बोध्यः 'जाव धूवकडच्छुयाणं' कही गई है (अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं) इस मणिपीठिका का आयाम और विष्कम्भ आठ योजन का है । (चत्तारिजोयणाबाहल्लेणं सव्वरयणामई अच्छा) इसका बाहल्य-मोटाई-चार योजन का है यह सर्वात्मना रत्नमयी है और आकाश एवं स्फटिक मणिके जैसी निर्मल है "अच्छा" यह पद यहां उपलक्षण रूप है, इस से श्लक्ष्ण आदि पदों का ग्रहण हो जाता है (तीसे णं मणिपेटियाए उवरि देवच्छंदए अट्ट जोयणाई आयामविखंभेणं, साइरेगा अट्ट जोयणाई उद्धं उच्चत्तणं जाव जिणपडिमा वण्णओ) उस मणिपीठिका के ऊपर एक देवच्छन्द-देवों के बैठने का आसन है उस आसन का आयाम और विष्कम्भ आठ योजन का है और इसकी ऊंचाई भी कुछ अधिक आठ योजन की ही है यहां यावत् जिन प्रतिमाएं है यहां यावत्पद से "इत्थ अट्ठसए जिण पडिमाणं पण्णत्ते तासिणं जिणपडिमाणं अयमेवारूवे वण्णावासे पण्णत्ते" इस पाठ का संग्रह हुआ है यहां जिनप्रतिमा से कामदेव की प्रतिमा तथा यक्ष विशाल भणी मावली छ. 'अट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणंओ' मा मणिपाडाना मायाम-१०४ मा यो रे। छे. 'चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं सव्वरयणामई अच्छा' એને બહલ્ય એટલે કે મેટાઈ ચાર યેાજન જેટલી છે. આ સર્વાત્મના નામયી છે, અને ॥श मा २५टि मणिवत् निभ छ. 'अच्छा' मा ५६ मडी Saक्ष ३५ छे. सनाथी २०६९ पोरे पहानु हय थयु छे. 'तीसेणं मणिपेढियाए उवरि देवच्छंदए अढ जोयणाई आयामविक्खंभेणं, साइरेगाइं अट्ठ जोयणाई उद्धं उच्चत्तणं जाव जिणपडिमा वण्णओ' ते મણિપઠિકાની ઉપર એક દેવચછન્દ એટલે કે દેવેને બેસવા માટેનું આસન છે તે આસનને આયામ–વિખંભ આઠ જન જેટલું છે અને તેની ઊંચાઈ પણ કંઈક વધારે આઠ योन रेक्षी छ. म 'यावत्' पहथी जिन प्रतिमामाने। सह थयेछे. मह यावत्पथी 'इत्थ अट्ठसए जिणपडिमाणं पण्णत्ते तासिणं जिणपडिमाणं अयमेयारूवे वण्णा. वासे पण्णत्ते' थे पाउने सह थयो छे. मडी नि प्रतिमामाथी महेवनी प्रतिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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