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________________ ટ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे 'तओ दारा' त्रीणि द्वाराणि 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्तानि, 'ते णं' तानि खलु 'दारा' द्वाराणि 'अट्ठ जोयणाई' अष्ट योजनानि 'उद्धं उच्चत्तेन' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन 'चत्तारि' चत्वारि 'जोयणाई' योजनानि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण - बिस्तारेण 'तावइयं चेव' तावदेव - तत्प्रमाणमेव योजनचतुष्टयमेवेत्यर्थः 'पवे सेणं' प्रवेशेन प्रवेशमार्गावच्छेदेन, 'सेया' श्वेतानि-शुक्लवर्णानि 'वरकणमधूभियागा' वर कनकस्तूपिकानि - उत्तमस्वर्णमय शिखरयुक्तानि, एतद्वाराणि वर्णयितुं सूचयति - 'जाव वणमालाओ' यावद्वनमाला :- ईहामृगेत्यारभ्य वनमालापर्यन्तवर्णको बोध्यः, सचाष्टमसूत्रात्सार्थी ग्राह्यः । तथा 'भूमिभागो य' भूमिभागच 'भाणि यव्त्रो' भणितव्यः - वक्तव्यः तस्य वर्णनं पञ्चमस्त्राद्बोध्यम्, 'तस्स णं' तस्य भूमिभागस्य खलु 'बहुमज्झ देसभाए ' बहुमध्यदेशभागे - अत्यन्तमध्यदेश भागे 'एत्थ णं' अत्र - अत्रान्तरे खलु 'महं एगा' महत्येका 'मणिपेडिया' मणिपीठिका मणिमयत्रासनविशेषः, 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ता, सा च 'अट्ठ' अष्ट 'जोयणाई' योजनानि ' आयाम विक्खंभेणं' आयामविष्कम्भेण दैर्घ्यविस्ताराभ्याम् ' चत्तारि ' णस्स तिदिसिं तओ दारा पण्णत्ता) इस सिद्धायतन के तीन दिशाओं में तीन दरवाजें कहे गये हैं । (ते णं दारा अट्ठजोयणाई उर्दू उच्चत्तण, चत्तारि जोयणाई' विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं सेआ वरकणगथुभियागा जाव वणमालाओ भूमिभागो य भाणि वो) ये द्वार आठ योजन के ऊंचे हैं चार योजन का इनका विष्कम्भ है और इतना ही इनका प्रवेश है ये श्वेत वर्ण के हैं और इनकी जो शिखरे हैं वे सुन्दर सोने की बनी हुई हैं। यहां पर वन मालाओं का एवं भूमिभाग का वर्णन करलेना चाहिये वनमालाओं का वर्णन "इहामिय" आदि पाठ से जान लेना चाहिये यह पाठ अष्टम सूत्र से और भूमिभाग का वर्णन पश्चम सूत्र से समझ लेना चाहिये वनमाला और भूमिभाग के वर्णन तक ही इन द्वारों का वर्णन किया गया है (तस्सणं बहुज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता) उसी भूमिभाग के ठीक बीच में एक विशाल मणिपीठिका 'तस्स णं सिद्धाययणस्स तिदिसिं तओ द्वारा पण्णत्ता' मा सिद्धायतननी ऋणु हिशायोभां त्रशु हरत्रालय। आवेला छे. 'तेणं द्वारा अट्ठ जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाई विक्खं. भेणं तावइयं चैव पवसेणं सेआ वरकणगथूमियागा जाव वणमलाओ भूमिभागो य भाणियब्बो' એ દ્વારા આઠ યાજન જેટલા ઊંચા છે. ચાર ચેાજન જેટલા એ દ્વારેના વિષ્પભ છે, અને આટલે જ એમના પ્રવેશ છે. એ દ્વારા શ્વેત વણુ વાળાં છે. એમના જે શિખરે છે તે સુદર સુવર્ણ નિર્મિત છે. અહી વનમાળાએ તેમજ ભૂમિભાગનું વર્ણન કરી લેવુ' જોઇએ. वनभाजाओ ं वर्षान 'इहामिय' वगेरे पाडची भागी सेवु लेह से. आ पाई अष्टम सूत्रમાંથી અને ભૂમિભાગનું વર્ણન પંચમ સૂત્રમાંથી જાણી લેવુ જોઇએ. વનમાળા અને ભૂમિछे. ' तस्स णं बहुमज्झसि - ठीउ मध्य भागमा भे भागना वार्जुन सुधी ४ मे द्वारा भाप एत्थ महं एगा मणिपेढिया वार्डन अरवामां आवे पण्णत्ता' ते भूमिभागना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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