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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे वर्णनरीतिः तथैषामपि बोध्या, सा च किम्पयन्ता ? इत्याह-'जाव अणुसज्जमाणा' यावद् अनुपज्जन्त:-सन्तानेनानुवर्तमानाः सन्ति, तत्रानुषज्जन्तीति अनुषजन्त इति वर्तमाननिर्देशः कालत्रयेऽपि एषां सत्ता सूचनार्थः, तेऽनुपजन्तः के सन्ति ? इत्याह-'पम्हगंधा मियगंधा अममा सहा तेतकी सणिचारीति ६' पद्मगन्धाः १, मृगगन्धाः २, अममाः ३, सहाः ४, तेतलिनः ५, शनैश्चारिणः ६ इति षडू मनुष्यजाति भेदाः, एपां विशेषतो विवरणं सुपमसुषमाकाळवर्णनप्रसङ्गे प्रागुक्तं, तज्जिज्ञासुभिस्ततो बोध्यम् ॥ ३०॥ अथात्र वर्तिनौ चित्रविचित्रकूटौ गिरी वर्णयितुमुपक्रमते-'कहि णं भंते !' इत्यादि । ___ मूलम्-कहि णं भंते ! देवकुराए चित्तविचित्तकूडा णामं दुवे पवया पण्णत्ता ?, गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ अटू चोत्तीसे जोयणसए चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्त अबाहाए सीयोयाए महाणईए पुरस्थिमपञ्चस्थिमेणं उभओ कूले एत्थ णं जाव अणुसज्जमाणा पम्हगंधमिअगंधा अमया सहा तेतली सणिचारीति) इनका विस्तार ११८४२ योजन और एक योजन के १९ भागों में से दो भाग प्रमाण है बाकी का इनका शेष वर्णन उत्तर कुरु के वर्णन जैसा है-यही बात सूत्रकारने (जहा उत्तरकुराए वत्तव्यया) इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की है यहां वर्णन उत्तर कुरु के जैसा 'अणुसज्जमाणा पम्हगन्धा, मिअगंधा अमया सहा तेतलीसणिचारीति' वहां के इस वर्णन तक करना चाहिये 'अणुसज्जमाणा' पद यह प्रकट करता है कि इनकी बंशपरंपरा का त्रिकाल में भी विच्छेद नहीं होता है इनके शरीर की गन्ध पद्म की गन्ध जैसी होती है इत्यादि रूपसे वहां की षट्र प्रकार की मनुष्यजाति के भेदों का वर्णन करनेवाले इन मृगगंध आदि पदों की व्याख्या सुषम सुषमाकाल वर्णन के प्रसङ्ग में हमने पहिले करदी है अतः वहीं से यह समझलेनी चाहिये ॥३०॥ अगंधा अमया सहा तेतली सणिचारीति' सेमनी विस्तार ११८४२ येन भने मे જનના ૧૯ ભાગમાંથી બે ભાગ પ્રમાણ છે અમનું શેષ બધું વર્ણન ઉત્તરકુરુના વર્ણન २ छ. मे पात सूत्रधारे 'जहा उत्तरकुराए वत्तव्यया' मा सूत्रा 43 ५४ ४२॥ मही शेष वन उत्त२४२.नी म 'अणुसज्जमाणा पम्हगंधा मिअगंधा अमया सहा तेतली सणिचारीति' मही सुधान सभा नसे. 'अणुसज्जमाणा' ५६ मा पात ५४८ ४२ छे કે એમની વંશપરંપરાને ત્રિકાલમાં પણ વિકેદ શક્ય નથી. એમના શરીરને ગંધ પદ્ધ છે ગંધ જે છે. વગેરે રૂપમાં ત્યાંના ૬ પ્રકારની મનુષ્યગતિઓના ભેદના વર્ણન કરનારા से 'मृगगंध' वगेरे पहानी व्याज्य। सुषम सुषमा नना प्रसमा भे पडसारी છે. એથી જિજ્ઞાસુ લેકે ત્યાંથી જ જાણવા પ્રયત્ન કરે છે સૂ-૩૦ છે For Private & Personal Use Only Jain.Education.international www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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