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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे
सार इति समस्तं पदम्, तद्वयाख्या पूर्व गता, 'यावद् भुक्त' इत्यत्रत्य यावत्पदसग्राह्यानां पदानां सङ्ग्रह औपपातिकसूत्रस्यैकादशसूत्रतः कार्यः तदर्थश्च तत्रैव मत्कृतपीयुषवर्षिणी टीकातो वोध्यः, ईदृशाभिलापेन महाकच्छशब्दस्य 'अस्थो य भाणियव्यो' अर्थश्व भणितव्यः वाच्यः सम्प्रति ब्रह्मकूटाख्यं वक्षस्कारपर्वत वर्णयितुमुपक्रमते 'कहिणं भंते !' इत्यादि छायागम्यम् नवरम् 'सेसं जहा चित्तकूड़स्स जाव आसंयंति' शेषं यथा चित्रकूटस्य यावदासते-शेषं वर्णितातिरिक्तं सर्व यथा चित्रकूटस्थ तथा वाच्यम् तत् किम्पर्यन्तम् इत्याहयावदासते-यावत्पदेन आयामादि सूत्रं भूमिभागवर्णनसूत्रपर्यन्तं च सर्व भणितव्यम्,
अथात्र कूटानि वर्णयितुमाह-'पउमकूडे चत्तारि कूडा' इत्यादि-सुगमम् ‘एवं' एवम्___ (कहि ण मंते ! महाचिदेहे वासे पउमकूडे णामं वक्खारपच्चए पण्णत्ते) हे भदन्त ! महाविदेह क्षेत्र में पद्मकूट नामका वक्षस्कार पर्वत कहां पर कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ! णीलवंतस्स दक्षिणेणं सीयाए महाणईए उत्तरेणं महाकच्छस्स पुरथिमेणं कच्छावईए पचत्थिमेणं एस्थ णं महाविदेहे वासे पउमकूडे णामं पवक्खारपन्यए पण्णत्त) हे गौतम ! नीलवंत पर्वत की दक्षिण दिशा में, सीता महानदी की उत्तर दिशा में, महाकच्छ विजय की पूर्व दिशा में एवं कच्छावती की पश्चिम दिशा में महाविदेह के भीतर पद्म कूट नामका वक्षस्कार पर्वत कहा गया है । (उत्तरदाहिणायए पाईणपडीण विच्छिन्ने) यह पद्मकूट नामका वक्षस्कार पर्वत उत्तर से दक्षिण तक तो लंबा है तथा पूर्व से पश्चिम तक विस्तीर्ण है-(सेसं जहा चिसकूडस्स जाव आसयंति) बाकी का और सब वर्णन इसके सम्बन्ध का चित्रकूट वक्षस्कार के प्रकरण में जैसा कहा गया है पैसा ही है यावतू वहां पर अनेक व्यन्तर देन और देवियां आराम करती है विश्राम करती है । (पउमकूडे चत्तारि कूडा पत्ता ) पाकूड के ऊपर
___ 'कहिणं भंते ! महाविदेहे वासे पउमकडे णामं वक्खारपवर पण्णत्ते' ७ लत ! મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં પાકૂટ નામક વક્ષસ્કાર પર્વત કયા સ્થળે આવેલ છે ? એના જવાબમાં प्रभु छ ? 'गोयमा ! णीलवंतस्स दक्खिणेणं सीयाए महाणईर पच्चत्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे पवउमडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते' 3 गोतम ! नीसन्त पतनी इक्षिय દિશામાં સીતા મહાનદીની ઉત્તર દિશામાં, મહાકચછ વિજયની પૂર્વ દિશામાં તેમજ કચ્છपतीनी पश्चिमाशामा मडाविनी २२ ५मट नाम १६४ार पत मावत छ. 'उत्तर दाहिणायए पाईणपडीणविच्छिन्ने' से पट नाम १३२४।२५ उत्तरथी दक्षिण सुधी दो छ तेभ पृथी पश्चिम सुधा विस्ती छे. 'सेसं जहा चित्तकूडस्स जाव आसयंति' से સંબંધમાં શેષ બધું વર્ણન ચિત્રકૂટ વક્ષસ્કારના પ્રકરણમાં કહ્યું છે તેવું જ સમજવું. યાવત hi व्यन्तर हेवे। मने देवी-यो माराम ४२ छ, विश्राम ४२ छे. 'पउमकूडे चत्तारि कूडा पण्णत्ता' ५५टनी 6५२ या२ टूटी ४ामा मायेद छ. 'तं जहा' तेमना नाभी या
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